दिल्ली
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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के सफल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से चीन बौखला गया है। पाकिस्तान की करारी हार एवं उसे दिए गए सबक को चीन पचा नहीं पा रहा है। चीन-पाक की सदाबहार दोस्ती के उदाहरण बार-बार सामने आते रहे हैं, हाल ही में सैन्य टकराव के दौरान चीन ने प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर पाक का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि सैन्य व आर्थिक मदद भी की। ऐसे ही संवेदनशील समय पर चीन ने भारतीय जमीन पर दावेदारी जताने एवं अरुणाचल के २७ स्थानों को चीनी नाम देने की कुचेष्टा की है। उसकी यह नापाक कोशिश भी पाक के साथ खड़े होने का ही प्रयास है। भारत सरकार ने अरुणाचल के भीतरी स्थानों को नए नाम देने के चीन के निराधार और बेतुके प्रयासों को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए इसकी निन्दा की है। चीन अपनी दोगली नीति, षडयंत्रकारी हरकतों एवं विस्तारवादी मंशा से कभी बाज नहीं आता। वह हमेशा कोई ऐसी कुचेष्टा करता ही रहता है जिससे भारत-चीन सीमा पर अक्सर तनाव रहता है। भारत ने दो टूक जवाब देते हुए साफ कहा है, कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और यह चीनी दुष्प्रचार के सिवाय कुछ नहीं है। चीन की इस हरकत ने यह साफ कर दिया है कि उससे संबंध सुधारने की भारत की तरफ से कितनी ही पहल हो जाए, वह सुधरने वाला नहीं है।
निश्चित ही चीन की ये दकियानूसी हरकतें पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, एवं उच्छृंखलता का द्योतक है। नाम बदलने से इस स्पष्ट और निर्विवाद वास्तविकता को नहीं बदला जा सकता कि अरुणाचल भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा। इस तरह की बेतुकी हरकतों से भारत को उकसाना चाहता है। इसी नीति के तहत वह भारत के पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बना कर पुलों, सड़कों, व्यावसायिक केंद्रों आदि का निर्माण कर भारत की सीमा पर तनाव पैदा करने की भी कोशिश करता रहा है। शायद उसने यह मुगालता पाल लिया है कि ताजा घटनाक्रम से भारत दबाव में आ जाएगा, लेकिन भारत अब किसी दबाव में नहीं आएगा, बल्कि इनका सक्षम एवं तीक्ष्ण तरीके से जबाव देने में भारत सक्षम है। चीन की अधिक बौखलाहट का बड़ा कारण भारत द्वारा उसके एयर डिफेंस सिस्टम, ड्रोन, मिसाइल आदि की पोल खोल कर रखना है। अब उसके लिए दुनिया के निर्धन देशों को अपने दोयम दर्जे के चीनी हथियार बेचना कठिन होगा, क्योंकि पाक ने जिस चीनी मिसाइल का इस्तेमाल किया था, उसे भारत ने नाकाम कर दिया।
चीन यह तो चाहता है कि भारत उसके हितों को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरते, लेकिन खुद उसकी ओर से भारत के प्रति अपेक्षित संवेदनशीलता को लगातार नजरअंदाज करता है। चीन भरोसे लायक देश नहीं है, इसलिए चीन के प्रति कठोर रवैया जरूरी है। निस्संदेह नाम बदलने जैसी घटनाएं हमें सतर्क करती हैं कि चीन के साथ मैत्री संबंधों के निर्धारण के दौरान हमें सजग, सावधान व सचेत रहना चाहिए। अन्यथा चीन पीठ पर वार करने से नहीं चूकने वाला है। भारत को चीन के साथ अपनी तिब्बत नीति पर भी नए सिरे से विचार करना होगा।
चीन किए गए वायदों एवं समझौतों से पीछे हटता रहा है, चीनी राष्ट्रपति ने दोनों देशों के बीच १९९३, १९९६, २००५ और २०१३ में परस्पर भरोसा पैदा करने वाले समझौतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने अपनी सेना को भारतीय दावे वाले इलाकों में अतिक्रमण करने का आदेश दिया। इसी का अंजाम रही जून २०२३ में गलवान घाटी जैसी घटना, जिसमें उसके सैनिक गलवान घाटी में घुस आए थे, जिन्हें रोकने में खूनी संघर्ष हुआ। तबसे दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण बने हुए हैं। चीन की विस्तारवादी नीति भारत सहित सम्पूर्ण एशिया के लिए ही नहीं, पूरे विश्व के लिए बड़ा खतरा है।
Lभारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक ताकत चीन को चुभती रही है, इसलिए वह चोरी, चालाकी और चालबाजी से भारत को कमजोर करने की चालें चलता रहता है। दरअसल, अरुणाचल प्रदेश ही नहीं, अक्साई चीन, ताइवान और विवादित दक्षिण चीन सागर पर भी चीन अपना दावा जताता रहा है, मगर भारत की तरफ से मिले सख्त प्रतिरोध, सामरिक शक्ति और रणनीतिक सूझ-बूझ से उसे हर बार मुँह की खानी पड़ी है।
भारत को अनेक मोर्चों पर चीन को आड़े हाथ लेना होगा। सबसे जरूरी है चीन के सामान का बहिष्कार, इस पर सरकार के साथ हमारे उद्योग जगत एवं आम जनता को भी गंभीरता से सोचना होगा। ऐसा करके ही चीन की कमर को तोड़ा जा सकता है। आज दुनिया के अनेक देश चीनी सामान का बहिष्कार कर रहे हैं, हमें भी कठोर कदम उठाने होंगे। भारत ने जब भी पाक में पनाह पाए आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डलवाने का प्रयास किया, चीन संयुक्त राष्ट्र में अपने ‘विशेषाधिकार’ का प्रयोग कर उसे रोकने की कोशिश करता रहा है, जबकि पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का समर्थन करती रही है। जिससे पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने तथा व्यापार-कारोबार बढ़ाने की बात करने वाला चीन भारत के प्रति कैसी दुर्भावना रखता है।
जाहिर बात है कि चीन ने ऐसा न केवल चुनौतीपूर्ण समय में भारत का ध्यान भटकाने के लिए किया है, बल्कि पाक के साथ एकजुटता दिखाने के लिए भी किया है। अपनी आर्थिक शक्ति के नशे में चूर अहंकारी चीन अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को जिस तरह धता बता रहा है, उससे वह विश्व व्यवस्था के लिए खतरा ही बन रहा है। चीन भूल गया है कि अब भारत १९६२ वाला भारत नहीं है, यह नया भारत है और आज का भारत चीन को मिट्टी में मिलाने की ताकत रखता है। भारत की रणनीति साफ है, स्पष्ट है। आज का भारत समझने और समझाने की नीति पर विश्वास करता है, लेकिन अगर हमें आजमाने की कोशिश होती है तो जवाब भी उतना ही प्रचंड देने में समर्थ हैं। भारतीय सेना में सरहदें बदल देने की क्षमता है, दुश्मनों को इरादों को ध्वस्त करने का माद्दा है। इसलिए चीन अपने नक्शे में भले ही छेड़छाड़ करता रहे, लेकिन भारत की भूमि कब्जाने की उसकी मंशा अब कभी साकार नहीं होगी।