डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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विश्व पिता दिवस (१५ जून) विशेष…
अभयदान आशीष स्नेह सुख, मातु पिता बरगद छाया है,
लिया जन्म बीता सुख बचपन, पिता साथ निर्भय काया है
अनुपम संरक्षण आभासित उन्मुक्त उड़ानें हैं मन भरता,
मातु-पिता ममतांचल शीतल अपनापन सुख दिखलाता है।
माँ रखती हर खयाल सन्तति, पिता छत्र छाया देता है,
देखभाल तन-मन सुत अर्पण पिता सदा मेहनत करता है
हाथ पकड़ चलता है बचपन पिता सहारा नित पथ बनता,
चंचल नटखट मनमानी शिशु, मातु पिता बल इठलाता है।
अभयदान बस चहुँ विकास पथ जिसमें बचपन खिल जाता है,
अनुशासित जीवनचर्या सन्तान को उन्मुख करता है
अभयदान का अर्थ नहीं है कदाचार कुत्सित पथ जाना,
सत्संगति पथ शील त्याग रत संयम सुमति बचपन पाता है।
चारु ललित नव किसलय बचपन माँ नैन जल सींच जाता है,
रोना-धोना मातु मनाना बेलन माँ का दिल भाता है।
देख पिता की तिरछी नजरें है डरता बचपन छिप जाता,
पा मातु-पिता पा अभयदान प्रेमसुधा बचपन जीता है।
खिले महकते बचपन गुलशन गुलशरीन नित मातु-पिता है,
सुख-दु:ख विपदा विरत चपल मन, अभय खुशी बचपन जीता है।
खुशियों का अम्बार बालपन अभयदान वात्सल्य सुहाता,
मातु-पिता सिंचित प्रेमांजल युवकर्म सिद्धि सुयश मुस्काता है॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥