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पूरे देश में एक सर्वसम्मत भाषा होनी चाहिए, जिसे सभी समझ सकें

जनभाषा में न्याय…

कानपुर (उप्र)।

हमें वार्तालाप की भाषा को आत्मसात करना चाहिए। देश में १२० भाषाएँ और २० हजार बोलियाँ हैं लेकिन पूरे देश में एक सर्वसम्मत भाषा होनी चाहिए, जिसे सभी लोग बोल और समझ सकें।
उद्घाटन सत्र में समारोह में मुख्य अतिथि इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंसेज के निदेशक डॉ. जी. के. गोस्वामी (भा.पु.से.) ने यह बात कही। अटल बिहारी वाजपेयी स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज, छत्रपति शाहू जी महाराज, विश्वविद्यालय (कानपुर) तथा ‘भारतीय भाषा अभियान’ के संयुक्त तत्वावधान में १९-२०# अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा भारतीय भाषाओं में न्याय’ विषय पर विश्वविद्यालय द्वारा उक्त राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें भारत के विभिन्न हिस्सों से छात्र, शिक्षक, शिक्षाविद एवं अधिवक्ता आदि सम्मिलित हुए। प्रथम दिन सेनानायक तात्या टोपे सीनेट हॉल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी (२१ हजार से अधिक निर्णय हिंदी में दे चुके) ने कहा कि जनता को जनता की भाषा में न्याय मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि कानूनी कार्रवाई तथा हिंदी में निर्णय लिखने का उद्देश्य यह है कि कानून की भाषा को आम आदमी समझ सके । उन्होंने हिंदी को अपनी माँ और अन्य सभी भाषाओं को मौसी बताया। यह भी बताया कि कुछ शब्द जो दूसरी भाषा में अनूदित नहीं हो सकते, उन्हें मूल रूप में लिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि अपनी भाषा को नकारना राष्ट्रीयता के प्रति उदासीनता है।
विवि के प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने कहा कि हमें भाषा के प्रचार-प्रसार एवं उसके पल्लवन के लिए प्रत्येक भाषा के साथ-साथ प्राचीन भाषा संस्कृत एवं उसकी अपभ्रंश भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने बताया कि हमारे विवि में अकादमिक क्षेत्र के पाठ्यक्रमों में सेमेस्टर के विषय की पहली यूनिट भारतीय ज्ञान-प्रणाली के अन्तर्गत भारतीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
इसके पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं भारतीय भाषा अभियान के राष्ट्रीय सह‌ संयोजक कामेश्वर नाथ मिश्र ने भारतीय भाषा के प्रसार के संघर्ष-पथ का वर्णन करते हुए कहा कि वर्ष २००४ से भारतीय भाषाओं का संघर्ष शुरू हुआ, जो आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० में क्षेत्रीय भाषाओं में सभी विषयों का अध्यापन कार्य प्रारंभ हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ७३ हजार निर्णयों का हिंदी में अनुवाद कृत्रिम मेधा के माध्यम से किया गया है और इस समय १८ वाद सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी भाषा में चल रहे हैं। हमारे प्रयासों से ३ आपराधिक कानून के नाम हिंदी में व २१ फरवरी को बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा विधि की पढ़ाई क्षेत्रीय भाषाओं में भी हो सकने का महत्वपूर्ण निर्देश दिया गया।
अंत में कुलसचिव प्रो. अनिल कुमार यादव ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
प्रथम सत्र का शुभारंभ करते हुए वक्ता डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ (भारतीय भाषा मंच, केंद्रीय टोली सदस्य तथा निदेशक- वैश्विक हिंदी सम्मेलन) ने कहा कि जिस प्रकार देश के बड़े-बड़े वकीलों ने अंग्रेजों से आजादी के लिए जन-जन को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा था, उसी तरह अंग्रेजी से आजादी और जनभाषा में न्याय के लिए किसान, मजदूर, विद्यार्था सहित जन-जन को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। निर्णय तो इस बात पर होना चाहिए कि न्यायमूर्ति जनता की भाषा सीखें या जनता न्यायमूर्ति की भाषा सीखे ? शंकर झा (अधिवक्ता- सर्वोच्च न्यायालय) ने वर्तमान में उत्तर प्रदेश में हिंदी में न्याय की सुविधा के बारे में बताते हुए कहा कि यदि हर अधिवक्ता हर वादी का एक-एक वाद भी हिंदी में डाले तो भी इतने वाद होंगे कि ऊपर तक स्थिति बदल जाएगी और भारतीय भाषाएँ अपना स्थान बना लेंगी। प्रथम सत्र का समापन लीगल स्टडीज के सहायक आचार्य मोहित अवस्थी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन कर दिया गया।
द्वितीय सत्र में ललित मुद्गल (संयुक्त निदेशक, अभियोजन, इलाहाबाद उच्च न्यायालय) ने कहा कि जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश हर किसी तक पहुंचता है वैसे ही न्याय का उजाला भी हर व्यक्ति तक पहुंचे, इसके लिए न्याय का माध्यम उसकी भाषा होनी चाहिए। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. पंकज द्विवेदी और अखिलेश मिश्र ने भी विचार व्यक्त किए। सत्र का समापन स्टडीज के सहायक आचार्य समरेंद्र चौहान द्वारा धन्यवाद से किया गया। समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में न्यायमूर्ति श्री चौधरी, विशिष्ट अतिथि प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी एवं सभी शिक्षकगण भी मौजूद रहे ।
कार्यक्रम में सत्य नारायण गौतम द्वारा रचित ‘कविताएं एवं गीत संग्र’ पुस्तक का विमोचन किया गया। कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार यादव ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम को विराम दिया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)