सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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“मम्मी, देखो ना… कितनी प्यारी बतख आई है, अपने बगीचे में!!”
मेरे ७ वर्षीय पुत्र शिव ने उत्साह और आश्चर्य मिश्रित स्वर में मुझे पुकारा। मैंने देखा, एक छोटी-सी बतख फूलों की क्यारियों के मध्य छुपने की कोशिश कर रही थी। मैंने तुरंत बेटे से कहा कि,-“उसके पास मत जाओ.. शायद बतख हमसे डर रही है। लगता है… कहीं गलती से इधर आ गई है।”
“मम्मी, बताओ ना, बतख क्या खाती हैं, मैं उसे रोज खाना और पानी दिया करूंगा। उसे अपना दोस्त बनाऊंगा।” शिव का उत्साह तो आसमान छूने लगा था।
“मम्मी, मैंने तो बतख का नाम भी सोच लिया है, अब से मैं उसे ‘मून’ बुलाऊंगा।”
मेरे बेटे को चंद्रमा बहुत पसंद है, शायद इसीलिए उसने बतख का यह नामकरण किया है। मैं सोच रही थी कि… बच्चे कितने मासूम, सहज और दयालु होते हैं। सच, बच्चे ईश्वर की बहुत अदभुत कृति है। काश! ये हमेशा ऐसे ही बने रहें।
अब तो स्कूल के बाद शिव का पूरा दिन बतख की देखभाल में उसके आसपास ही निकलने लगा। समय पर उसे खाना-पानी देना, अपने दोस्तों की बातें बताना, मोबाइल से बतख की तरह-तरह की तस्वीरें लेना। बतख भी बिल्कुल हमारे परिवार के सदस्यों की तरह शिव के पीछे-पीछे पूरे घर में घूमती। कितनी प्यारी बात है कि धरती के सभी जीव प्रेम और सुरक्षा को महसूस कर लेते हैं। मैंने शिव को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा था।
मैं भी अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहती और शिव के ढेरों सवालों के जवाब भी देती। १५ दिन गुजरने के बाद एक दिन शिव कहने लगा कि, “मम्मी मुझे आजकल मून कुछ उदास लगती है। उसे शायद उसकी मम्मी की याद आती है।”
मैं शिव का मुँह ताकने लगी। ७ वर्ष का इतना छोटा-सा बच्चा और ऐसी गहरी संवेदनाएं..!! आज अचानक मुझे अपने बेटे पर गर्व हो आया। मैंने शिव से पूछा कि “तुम्हें कैसे पता चला…?”
तब शिव ने बताया कि “जब भी पीछे की गली के एक बगीचे-वाले घर से कुछ पक्षियों की आवाजें आती हैं, तो मून उछलने लगती है फिर उदास हो जाता है। मम्मी, मुझे लगता है कि मून की मम्मी जरूर वहीं रहती होगी। आप उसे उसकी मम्मी के पास भेज दो न।”
बतख को इतना प्यार करनेवाले अपने बच्चे के मुँह से यह बात सुन कर मैं हैरान रह गई। माँ की ममता बच्चों के लिए कितनी आवश्यक है, शिव की बातों से मुझे महसूस हुआ।
२ दिन में अपनी कामवाली बाई पारो से मैंने पीछे बगीचे-वाले घर की जानकारी निकाली और उसी के साथ बतख और शिव को भेज दिया। वापस आने पर मैंने देखा कि शिव की आँखों में आँसू भरे हैं, फिर भी वह मुझे बहुत उत्साह से बताने लगा कि “मम्मी, जैसे ही हम उस बगीचे-वाले घर के सामने पहुंचे, बतख खूब उछलने लगी और बाई की गोद से ही उछल कर गेट के अंदर बगीचे में बने छोटे से तालाब में कूद गई, जहां उसके जैसी ही कई बतख पानी में तैर रही थी।”
शिव कहने लगा कि, “मुझे बहुत खुशी हुई मम्मी कि, मेरी मून अपने घर… अपनी मम्मी के पास पहुंच गई।”
मैंने शिव को गर्व से गले लगा लिया, क्योंकि उसके साथ-साथ मेरी भी आँखें नम हो गई थी।