दिल्ली
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चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दल महिलाओं को लुभाने के लिए आकर्षक कल्याणकारी योजनाओं एवं मुफ्त की सुविधाएं देने की बढ़-चढ़ कर घोषणाएं करने लगे हैं। महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गईं कल्याणकारी योजनाएं एवं मुफ्त की सुविधाएं अब खेल बदलने वाली बन रही हैं। महिलाओं के खाते में सीधे नगद स्थानांतरण की जाने वाली योजनाएँ तो भारत की राजनीति में मत बटोरने का एक जांचा-परखा एवं सशक्त माध्यम बन गया है। यूँ तो लम्बे समय से महिलाओं को लेकर तरह-तरह की घोषणाएं होती रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में इस योजना की कामयाबी के बाद यही कहानी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखण्ड में दोहरायी गई है। इससे चुनावों में लगातार महिला मतदाताओं का उत्साह बढ़ता जा रहा है और किसी की दल की जीत-हार में उसकी भूमिका भी स्पष्ट होती जा रही है। इसी विषय को लेकर एसबीआई शोध प्रतिवेदन में खुलासा हुआ है कि महिला केंद्रित योजनाओं के कारण इन महिला मतदाताओं की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी आँकड़ों के मुताबिक २०१४ में कुल मतदाता ८३.४ करोड़ थे, जो २०२४ में बढ़कर ९७.८ करोड़ हो गए हैं। इसमें महिला मतदाता की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ी है। शोध दल के प्रतिवेदन के मुताबिक देश में अब १०० पुरुष मतदाताओं पर ९५ महिला मतदाता की संख्या है। पिछले १० वर्षों में जिन ९ करोड़ नये मतदाताओं ने मत दिया, उसमें महिलाओं की हिस्सेदारी ५.३ करोड़ है। महिलाओं का मतदान के प्रति बढ़ता रूझान लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक शुभ संकेत है।
नये अध्ययन से यह भी खुलासा हुआ है कि महिला साक्षरता में वृद्धि हुई है, जिसका सीधा असर महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ने से है। महिला साक्षरता में १ फीसदी की वृद्धि से महिला मतदाताओं की संख्या में २५ फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। दिलचस्प पहलू यह भी कि एससी और एसटी वर्ग में मतदान में लगातार इजाफा हुआ, वहीं सामान्य वर्ग में कम। अब सरकारें बनाने में महिला मतदाताओं की भूमिका लगातार बढ़ती एवं निर्णायक होती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ३ बार के शासनकाल में विकास पर जोर देने के साथ-साथ महिला उत्थान पर भी बहुत ज्यादा ध्यान दिया। महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रोत्साहन मिल रहा है, स्वतंत्र पहचान मिल रही है और वे राजनीति के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा, क्षमता एवं कौशल का लोहा मनवा रही है। मोदी सरकार ने २७ साल से भी ज्यादा इंतजार के बाद पहली बार महिला आरक्षण बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों से पारित कराया। इस बीच सरकार ने महिलाओं को लेकर बनाई गई योजनाओं का नाम भी ऐसे रखा, जो सीधे महिलाओं के दिल को छू रही है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के जरिए महिलाओं को गैस सिलिंडर देना, जन-धन योजना के तहत खाता खुलवाना, मुस्लिम महिलाओं को लेकर तीन तलाक को कानूनी रूप से खत्म करना जैसे विधेयक ने जहां प्रधानमंत्री मोदी के कद को बढ़ाया, वहीं महिलाओं की राजनीति में सक्रियता एवं मतदान में अधिक हिस्सेदारी को नये पंख दिए हैं। इन योजनाओं से २० करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं, ५ करोड़ से ज्यादा शालेय छात्राओं और ११ करोड़ से ज्यादा कामकाजी महिलाओं को लाभ पहुंचा है।
अब महिलाएं राजनीति एवं राजनेताओं के वजूद को बनाने में महत्वपूर्ण हो गई हैं। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड में सत्तारूढ़ दलों की चुनावों के बाद फिर वापसी में महिला मतदाताओं की भूमिका निर्णायक रही। मध्यप्रदेश में लाड़ली बहन, महाराष्ट्र में माझी लाड़की बहिन व झारखंड में मंईयां सम्मान योजना इसके उदाहरण हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार, कर्नाटक में गृहलक्ष्मी, ओडिशा में शुभद्रा योजना तथा असम में मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता योजना सामने आई है। यह होड़ आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी नजर आ रही है। एक ओर जहां आआप सरकार ने महिला मतदाताओं के लिए ‘महिला सम्मान योजना’ के तहत २१०० ₹ देने का वायदा किया, वहीं कांग्रेस द्वारा ढाई हजार देने की योजना है। इस दिशा में भाजपा भी गंभीर है। दरअसल, दिल्ली में महिला मतदाताओं का प्रतिशत पुरुष मतदाताओं के पास पहुंच गया है। कहा जाता है कि साल २०२० के चुनावों में महिला मतदान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन जरूरत इस बात की है कि महिलाओं से जुड़ी योजनाएं एवं उन्हें दी जाने वाली मुफ्त सुविधाएं सत्ता प्राप्ति या मत हासिल करने का स्वार्थी हथियार न होकर स्थायी प्रभाव व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का जरिया हो।शोध प्रतिवेदन बताता है कि महिला केंद्रित योजना लागू करने वाले राज्यों की संख्या १९ हो गई है, जिसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम व कर्नाटक जैसे राज्य अग्रणी हैं। इन राज्यों में औसतन ७.८ लाख (कुल १.५ करोड़) महिला मतदाताओं की संख्या में इजाफा हुआ है। केन्द्र एवं राज्यों की महिला कल्याणकारी योजनाओं के कारण महिला मतदान बढ़ा है, जिनमें ४५ लाख महिलाएं साक्षरता में वृद्धि के कारण मतदाता बनी हैं, ३६ लाख महिलाओं ने रोजगार और मुद्रा योजना की वजह से मतदान किया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर का मालिक बनने के कारण २० लाख महिलाएं मतदान के लिए गई थी और वहीं २१ लाख महिलाएं स्वच्छता, बिजली और पानी की पहुंच में सुधार के कारण मतदान के लिए अग्रसर हुई।
चुनाव के दौरान नेताओं एवं राजनीतिक दलों द्वारा किए गए मुफ्त सुविधाओं के वादों को केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके आर्थिक पक्ष पर भी विचार किया जाना चाहिए।
पंजाब में महिलाओं को १ हजार ₹ देने के आम आदमी पार्टी की घोषणा के बावजूद यह राशि न देना ठगना है, बल्कि उनके सम्मान को आघात लगाना है। अगर इन वादों के लिए राज्य के पास अपर्याप्त धन और सीमित संसाधन हैं, तो ऐसे वादों से बचना चाहिए। अगर कोई सत्ताधारी दल, राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी पैसे को मुफ्तखोरी पर खर्च करते हैं, तो इससे राज्य का वित्तीय ढांचा बिगड़ सकता है। राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के दौरान सार्वजनिक धन से मुफ्तखोरी और तर्कहीन वादे करना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं। मुफ्त के वादे को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी सवाल है कि यह प्रथा कैसे नैतिक है, क्योंकि यह मतदाताओं को लुभाने के लिए एक तरह से रिश्वत देने के समान है। जानकारों का मानना है कि श्रीलंका के आर्थिक पतन का कारण वहाँ के राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए मुफ्त उपहार रहे हैं। हालांकि, गरीबों की मदद के लिए चिकित्सा, शिक्षा, पानी और बिजली जैसी आधारभूत जरुरतों और कुछ कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन के व्यय को जायज ठहराया जा सकता है। इसी तरह महिलाओं के लिए कुछ योजनाएं रोजगार एवं आत्मनिर्भरता की दृष्टि से उपयोगी हो सकती है, पर इनको मत हथियाने का माध्यम बनाना लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। केवल सत्ता प्राप्ति के लिए मुफ्त की राजनीति का खेल न खेलकर हमें स्वस्थ लोकतंत्र एवं उज्ज्वल चरित्र को बढ़ावा देना चाहिए।