दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है॥
मैं और मेरी खुशियां स्वर्णिम,
गर्व फूली न समाती है।
जन्म लिया भारत में मैंने,
जिसकी नभ तक थाती है।
मातृभूमि पर सब न्योछावर,
जन-जन भारतवासी हैं।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
शीश हिमालय,चरणों सागर,
पवित्र नदियों का जाल बुना।
सोना रेत-माटी उगलाकर,
स्वर्ग-धरती सुन्दर सपना।
पूरब सात बहिनों की महिमा,
इंद्रधनुष आभासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
मानसून,मावठ दोनों है,
काल-सुकाल समय के खेल।
आदिवासी,आधुनिक सब जन,
इसमें रहते हिलमिल मेल।
अग्रज-अनुज पीढ़ी दर पीढ़ी,
विचार अग्रसर राजी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
धर्म-एकता और विविधता,
भारत के रग-रग में बसा।
रंग-रंग के भांति फूलों से,
यह अपना गुलशन है सजा।
धर्म,रूप,रंग-जात से ऊपर,
एक ईश्वर विश्वासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
योग,प्रणाम और सूर्य नमस्कार,
प्रातः बेला के साज सजे।
आरती,अजान,प्रार्थना की गूँजें,
शबद वाणी प्रतियोम बजे।
कण-कण में ईश्वर की महिमा,
आध्यात्म लौ में उजासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
पुरा-पुरा युगों से चलकर,
जीव सनातन आज महान।
वेद और विज्ञान से गुम्फित,
वसुकुटुंब-सा सकल जहान।
देव-अतिथि सम-मन धारण,
आदर पाते प्रवासी हैं।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
राम-युधिष्ठिर सत्य-हरिश्चंद्र,
धर्मगाथाएं हमने सुनी।
सीता,सावित्री,नारी-नारायणी,
नमन तुझे धन-धन जननी।
सनातन संस्कृति हृदय संजोकर,
पुण्य-प्रसून सुवासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
कर्मज्ञान किसना(भगवान कृष्ण)से पाकर,
अर्जुन धर्म की राह चुनी।
बलि-करण और ऋषि-दधीचि,
दान कथाएं मिसाल बनी।
जीवन बाल-गृहस्थ से सजकर,
वानप्रस्थ,सन्यासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
ध्यान,तपस्या,यज्ञ वेदी से,
वृहत आर्यावर्त्त मान अपना।
वेद,उपनिषद् ,महाकाव्यों से,
ज्ञानकोष समृद्ध बना।
ऋषि,मुनि,ज्ञानी,विद्वओं की,
वाणी बनी प्रभाषी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
चरक,सुश्रुत,आर्यभट्ट ने,
तर्क विज्ञान में योग किया।
लोपा,मुद्रा,गार्गी विदुषियां,
नारी विद्वता प्रमाण दिया।
भारत के गुणोज्ञान की वृद्धि,
दिन-दिन बढ़ती प्रकाशी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
कला,ज्ञान,विज्ञान से सृजित,
तन-मन में आध्यात्म रमा।
आस्था-विज्ञान का मेल था ऐसा,
‘अजस्र’ ज्ञान मिसाल बना।
विश्वगुरू फिर से बन चमके,
परम बने,विश्वासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
पृथ्वी,शिवा,प्रताप का शौर्य,
अशोक,चन्द्रगुप्त नाम महान।
पन्ना,मनु,सावित्री,अहिल्या,
कित्तूर,सरोजिनी स्त्री अभिमान।
मंगल,सुभाष,भगत,आजाद के,
दर्शन को दुनिया प्यासी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
वीरों और शहीदों का बल,
‘जय-हिंद’ नारा अपना।
त्यागी और बलिदानियों के दम,
स्वतंत्र राष्ट्र का सच सपना।
साहस अदम्य महापुरुषों का,
बाजी जान लगा दी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
वंदे-मातरम और जन-गण-मन,
ध्वज तिरंगा,अशोक स्तंभ।
यह सब भारत प्राण तत्व है,
जन-जन भरते इनका दंभ।
राष्ट्रपिता बापू ही के जो,
सत्य-अहिंसा समाजी हैं।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
एक-अनेक की अखंड एकता,
व्यक्ति-व्यक्ति सब एक समान।
संविधान सबके ऊपर है,
भारत की जनता गुणगान।
फूल-फूल माला में गुंथे,
संघ एकता विश्वासी हैं।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
होली,दिवाली,ईद,दशहरा,
क्रिसमस,पोंगल पूरे साल।
उत्सव त्योहार जयन्तियों में,
बजते सबके दिल के तार।
नवरात्रे,रमजान,बड़े दिनों,
पर्यूषण पर्व,बैसाखी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
स्वतंत्रता,गणतंत्र दिवस जब ,
देश,देश-जन मनाते हैं।
भूल सभी अपना व पराया,
देशभक्ति जतलाते हैं,
भारतमाता भी गर्व करे तब
लालों पर प्रेम बरसाती है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
विश्व परिदृश्य सब देशों में,
भारत आज विशिष्ट महान।
धर्म-सहिष्णुता,मानवता और,
लोकतंत्र की मिसाल जहान्।
मंगल-चाँद पर पहुंच बनाकर,
विश्व-भविष्य का साँझी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
रक्त सींच कर ‘हे! भारत माँ’,
शीशफूल श्रृंगार धरें।
मान पर तेरे अर्पण सब-कुछ,
तन-मन-धन और प्राण करें।
वैभवरूपी तेरा तिरंगा,
गगन चढ़े आकांक्षी है।
दर्द पराया जो अपनाए,
भारत भूमि वासी हैं ।
‘परहित सबके काम वो आए’,
भारत जन अभिलाषी है…॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|