कुल पृष्ठ दर्शन : 236

You are currently viewing भुलाए न भूले तुझको सनम

भुलाए न भूले तुझको सनम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

***********************************************

तुम्हीं मेरे दिल थे, तुम्हीं मेरी ज़ान,
बिन कुछ कहे कहाँ तुम चले गए ?
न कोई शिकायत, न गिले शिकवे,
बेगाना बना के अलविदा कह गए।

मेरी जिंदगी का मकसद, हुस्न रुमानी,
भुलाए न भूले सुहाना सनम दिल
क्या गलती हुई थी मुझसे सनम,
गमों के सितम को प्रिये क्यों ढा गए ?

तुम मेरी आरजू थी, इबादत थी मेरी,
तुम मेरी आबरु थी, कशिश भी तुम्हीं थी
हरदिली नज़ाकत, मुस्कुराहट तुम्हीं थी,
पलभर लुटा प्रीत सनम क्यों सो गए ?

खुशी जिंदगी की गुलिस्तां महक थीं,
बीच मझधार नौका, पतवार थे तुम
छोड़ अकेले मुझे गम धारों में बहने,
चिरनिद्रा के तिमिर में कहाँ खो गए ?

मेहनतें मेरी सारी, रचाई मुहब्बत,
जिंदा लाशें बना दु:ख दरिया में फेंकी
तनिक भी न सोचा, जीऊँगा मैं कैसे ?
सहूँ मैं कैसे गम अब तेरी ज़ुदाई ?

खुद़ के बिना तुम पल अहसास देकर,
आज़ाद हो, बस आबाद रहो तुम
बस, यादों की गुलफ्सां मेरी बन रह़ो तुम,
दुआ है बस मेरी, हो ज़न्नत-ए-सलामत।

बचाने को तुझको माँगी थी दुआएँ,
अफ़सोस, फिर तुझे हम भी बचा न सके,
मेरी तू अमन थी,चमन भी थी मेरी,
प्रिये! बेवक्त क्यूँ तुम मुरझा गए ?

जाना ही था तो क्यों दिल्लगी की तुमने,
बिन खूशबू बिखेरे तनिक ही खिली थी,
दिया ज़ख़्म गहरे सदमे का तूफ़ां में,
क्यूँ वीरान करके कहर ढा गए ?

श्वाँसें मेरी थी, अल्फाज़ बनकर खड़ी थी,
थी रूहें मेरी तुम, मेरी जिंदगानी
अफ़साने आशियां की तुम मल्लिका थी,
नव सपने दिखाकर कहाँ खो गए ?

मैं कैसे भुलाऊँ अनोखे पलों को,
न कोई गुफ्तगू की, न नखरे दिखाए
हँसी की फुहारों में उलझा मुझे तुम,
अनन्त चिर निद्रा में क्यों सो गए ?

निःशब्द आज मैं हूँ दूँ कैसे विदाई ?
रूआँसा गला है, दूँ कैसे दुआएँ,
जहाँ भी रहो बन खुशी ज़न्नते तुम,
बस, मुझको अकेला तुम चल दिए।

खुले आसमां में तुम सदा टिमटिमाओ,
नाराज़गी अधिक हो, बनके तुम जुगनू
साश्रु नयन को नव आशा किरण से,
हमदम चमन तज तुम परी बन गए।

हो ओझल नज़र से, न बुरा मानूँगा मैं,
सनम, जिंदगी के बचे कुछ जो लम्हें
गुजारूँ गमों में, तुम न भूले भुलाए,
मानी हकीकत मैंने जिंदगी के सफ़र की।

खुद़ के बिना तुम पल अहसास देकर,
मुबारक तुम्हें हो, यायावर तेरी राहें,
हो नसीब-ए-ज़न्नत, विनती है खुदा से,
बस, गुमनाम दिली अश्क बहते रहे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

 

Leave a Reply