शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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बसंत है आया रंगीला बसंत है आया।
सरस सुहावन अति मनभावन उर आनंद छाया॥
स्वागत है ऋतुराज पधारे रँग गुलाल उड़ाओ,
झाँझर,चँग,मृदँग बजाओ झूमो नाचो गाओ।
नृत्य करत रति कामदेव है अनंग हर्षाया,
बसंत है आया रंगीला बसंत है आया…॥
मंद-मंद है पवन बसंती,झूमे डाली-डाली,
गुन-गुन करते भ्रमर हुई है कोयल मतवाली।
बगिया में हर कली खिली,महुआ है गदराया,
बसंत है आया रंगीला बसंत है आया…॥
महका बाग चटख गई कलियाँ फूली क्यारी-क्यारी,
फूल-फूल मँडराये तितलियाँ घूम रही मतवारी।
सुन पपिहे की पिहू-पिहू कोयल ने गीत गाया,
बसंत है आया रंगीला बसंत है आया…॥
पीली-पीली सरसों फूली छायी हरियाली,
ओढ़ चुनरिया रँग बसँती धरा हुई मतवाली।
नील गगन से धरती तक लो बसंत है छाया,
बसंत है आया रंगीला बसंत है आया…॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है