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माहे रूह

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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यूँ ही सा वास्ता है किसी माहे रूह के साथ।
जीना हुआ मुहाल मेरा आबरू के साथ।

मंजिल करीब आई तो मकसूद अब नहीं,
यह हादसा हुआ है मेरी आरज़ू के साथ।

इतना सहल न जानिए है राहे हयात को,
होते हैं गुल में कर भी तो रंगों बू के साथ।

मुझ-सी गुनाहगार भी पाकीजा हो गई,
जब से जुड़ा है रिश्ता किसी सुर्ख रूह के साथ।

‘शाहीन’ धर के हाथ पे हाथ मत बैठिए,
दरकार है अमल भी मियाँ जुस्तज़ू के साथ॥