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मिथ्या रिश्ते-नाते

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मिथ्या सब रिश्ते-नाते ये, कलियुग में सब स्वार्थ सधा है
कहाँ आज अनुराग आपसी, मृगतृष्णा परमार्थ कहाँ है।

झूठे वादों में भरमाए मधुर वचन प्रत्यक्ष दिखा है
अन्तर्मन छल राग द्वेष भय, अपनापन अब कहाँ बचा है।

कहाँ दिखे भावों के रिश्ते, भागमभागी स्वार्थ बचा है
कहाँ कौन पहचाने रिश्ते, भौतिक दुनियाँ सभी फँसा है।

कहाँ मान है बन्धु सहोदर, इंच-इंच झगड़ों में धँसा है
क्षत विक्षत हैं खूनी रिश्ते, सत्ता पद मद मोह नशा है।

निर्दयता हिंसा अब रिश्ते, खुद का रिश्ता सिसक रहा है।
मिथ्या सब सम्बन्ध लोक में, लालच विषधर दिल फैला है।

हँसते ख़ुद परिवारिक रिश्ते, दुश्मन अपना स्वयं बना है।
कहाँ प्रगति निर्माण राह मिल, भूलभुलैया चाह फँसा है।

किसको किसकी चिन्ता अब है, दूसरों में अपनत्व दिखा है
मान दान सम्मान तिरोहित, दुश्मन भी मित्रत्व सजा है।

बना अंधेरा रिश्ते अपने, प्रेम शान्ति सहयोग कहाँ है।
मिथ्या रिश्ते-नाते कलियुग, छद्म दिखावों में अटका है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥