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मुख्यमंत्री के झूठे वादे और हमारे सरोकार

प्रो. अमरनाथ
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल )
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हाल-ए-बंगाल…

कल के ‘प्रभात खबर’ की खबर देखकर चौंक गया। ११ जनवरी २०२४ की पत्रकारवार्ता मैंने भी देखी थी। मुख्यमंत्री का आश्वासन पाकर मैंने भी खुशी मनायी थी। सार्वजनिक रूप से आश्वासन देकर बाद में मुकर जाना ममता बनर्जी के आचरण में मैंने पहली बार देखा और उनसे मोहभंग भी हुआ।

देश के अहिन्दी भाषी प्रान्तों में पश्चिम बंगाल ऐसा प्रान्त है, जहाँ सबसे ज्यादा हिन्दी-उर्दू भाषी रहते हैं। हिन्दी प्रदेशों के विश्वविद्यालयों या सार्वजनिक समारोहों में बोलते हुए जब हम कहते हैं कि बंगाल, हिन्दी पत्रकारिता की गंगोत्री है या हिन्दी में एम.ए. की पढ़ाई सबसे पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय में शुरू हुई और नलिनी मोहन सान्याल नामक एक बंगाली सज्जन को ही हिन्दी का पहला एम.ए. होने का गौरव हासिल है, तो बंगाल से जुड़े रहने के कारण हमारा सिर ऊँचा हो जाता है और सीना चौड़ा। हमेशा से बंगाल में हिन्दी-उर्दू भाषियों को सम्मानजनक स्थान हासिल रहा है। जो यहाँ पीढ़ियों से रह रहे हैं, उनके बेटे-बेटियों को भी उनकी भाषा में परीक्षा देकर सरकारी क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने का अवसर मिलता रहा है।
हिन्दी माध्यम के विश्वविद्यालय व कॉलेज खोलकर हिन्दी भाषियों की हित-चिन्ता करने का दावा करने वाली ममता बनर्जी की सरकार ने लगभग डेढ़ वर्ष पहले अचानक अपने प्रदेश के हिन्दी-उर्दू भाषियों को मिलने वाली उक्त सुविधा को छीन लिया और डब्ल्यू बी.सी.एस की परीक्षा सिर्फ बांग्ला और नेपाली में देने का आदेश जारी कर किया। स्वाभाविक है उनके उक्त आदेश का व्यापक विरोध हुआ और उन्हें भी अपनी भूल का अहसास हुआ, जिसके फलस्वरूप लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अर्थात ११ जनवरी २०२४ को नबान्न (सचिवालय) में पत्रकार वार्ता करके उन्होंने सार्वजनिक रूप से हिन्दी, उर्दू और संताली को भी पूर्ववत माध्यम के रूप में बहाल कर दिया। उनकी उक्त घोषणा से हिन्दी, उर्दू तथा संताली भाषियों में खुशी की लहर दौड़ गयी थी, किन्तु पिछले हफ्ते आयोग का जो नोटिफिकेशन (अधिसूचना) जारी हुआ है, उसमें किसी तरह के परिवर्तन का जिक्र नहीं है और कहा गया है कि परीक्षाएं पूर्ववत सिर्फ बांग्ला और नेपाली माध्यम से ही होंगी। जाहिर है अपने चुनाव को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री ने अपने प्रदेश के हिन्दी-उर्दू तथा संताली भाषियों को गुमराह किया है। एक जनतंत्र में अपने मुख्यमंत्री से हमें ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।
हम मुख्यमंत्री जी से माँग करते हैं कि वे तुरंत कार्यवाही करें और अपने वादे के अनुसार डब्ल्यू. बी. सी.एस की परीक्षा के लिए बांग्ला और नेपाली के साथ हिन्दी, उर्दू और संताली को भी बहाल करें, अन्यथा हिन्दी-उर्दू-संताली भाषी अपनी माँग को लेकर आन्दोलन के लिए बाध्य होंगे |

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)