कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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इक-इक पल है कीमती जानो,
स्वयं से तुम संवाद करो
व्यर्थ की बातों में उलझकर,
न वक्त अपना बर्बाद करो।
मिलती सफलता उसको निश्चित,
जिसने चित्त में ठाना है
कंटक भी रास्ता रोक ना सका,
जिसने खुद को जाना है।
मत करो प्रतीक्षा अगले क्षण की,
करना है जो आज करो
समय बहुत है पास हमारे,
इस सोच का तुम त्याज्य करो।
कर लो वादा स्वयं से आज तुम,
नहीं कभी भरमाओगे
करोगे ना पीछे पग को कभी,
ना ही तुम घबराओगे।
उठो चलो और चलते चलो,
संघर्षों का आगाज करो
साधोगे लक्ष्य को अवश्यमेव,
स्वयं पर तुम विश्वास करो।
समय को कोई रोक सके,
ऐसा संभव हो न पाया है।
जिसने समय का साथ निभाया,
वो सिकन्दर कहलाया है।
उठो बढ़ो और बढ़ते जाओ,
स्वयं का तुम विस्तार करो।
हाथ बढ़ा कर सुन मेरे वत्स,
अब मुट्ठी में आकाश करो॥