दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मैं प्यासा हूँ पर पानी नहीं है,
मैं भूखा हूँ पर खाना नहीं है।
फूल बहुत हैं बाग में खिलते-
पर किसी में भी खुशबू नहीं है॥
जख्म तो बहुत है दिल में मगर,
बता दूं कोई पूछे मुझसे अगर।
दर्द पता नहीं चलता किसी को-
दिखाता हूँ मैं जरा तुम तो ठहर॥
रजनी अब भयानक लगती नहीं,
चाँदनी भी शीतलता तो देती नहीं।
रोशनी अब गमगीन लगने लगी है,
भोर भी अब तो सुहानी होती नहीं॥
तन्हाई अपने आगोश में लेती नहीं,
कलियाँ अब तो फूल हैं बनती नहीं।
पता नहीं क्या हो गया है बहार को-
भंवरे अब तो फूल से लिपटते नहीं॥
समय का चक्र होता बड़ा अनमोल है,
होता ही रहे सबसे यारों मेलजोल है।
मित्र तो बहुत हैं पर कोई दोस्त नहीं-
‘दीनेश’ आज का यही बड़ा बोल है॥