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यही दर्द

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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सबके जीवन में आती है, कभी गर्मी कभी सर्द,
दर-दर जो भटकता फिरे, यही अकिंचन का दर्द।

मारा-मारा जो फिरे, धूल उड़े या उड़ती हो गर्द,
पसीना जिसका ना सूखे, यही अकिंचन का दर्द।

सूखी रोटी भी ना मिले, अमीर नहीं हमदर्द,
पानी पीकर जो पेट भरे, यही अकिंचन का दर्द।

खून-पसीना जो एक करे, नारी हो या ओ हो मर्द,
मालिक हेतु जो आहें भरे, यही अकिंचन का दर्द।

उद्योगपति तो ऐश करें, गरीब कांपते हैं सर्द,
मजदूरी समय पर ना मिले, यही अकिंचन का दर्द।

खेत में तड़पते किसान हैं, बाँटता कोई ना उनका दर्द,
कर्ज़ के बोझ में दबते जा रहे, यही अकिंचन का दर्द।

दीन भटकता रोजी खातिर, सह ना पाता पेट का दर्द,
शोषण करते पूँजीपति हैं, यही अकिंचन का दर्द।

कहे ‘उमेश’ हे दीनदयाल, हर लो दीनों के दर्द,
रोटी वस्त्र घर मिले सभी को, यही प्रभु से अर्ज॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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