दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम
लोग क्या कहेंगे,
परवाह कम करने लगे हैं हम।
उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम…
जिम्मेदारियों का बोझ,
उतार अपने कंधों से
फुरसत के पल निकाल कर,
सुस्ताने लगे हैं हम।
उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम…
दोस्ती करने के लिए,
नही चाहिए हमउम्र हमें
अनुभवों की पिटारी खोल सबको,
दिखाने लगे हैं हम।
उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम…
बहुत जी लिया शर्तों पर,
मन को अपने दबा लिया
खुशी की धुन पर अब खुल कर,
गुनगुनाने-थिरकने लगे हैं हम।
उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम…
ज़िंदगी का लम्बा सफर,
तय किया संभल संभल कर।
अब जीवन की राह पर,
जिंदादिली से चलने लगे हैं हम।
उम्र के इस दौर में,
आ गए हैं हम…॥