अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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छोड़ देता है
घर को बेटा आज़
पत्नी के लिए।
बेचारा बाप
जीवन की गठरी
उठाए कैसे ?
माँ बस रोती
काश! मेरी औलाद
ऐसी न होती।
सुखी न दिखा
पाला जिसे खून से
उसी का दुःख।
रिश्ते बेगाने
रहा नहीं भरोसा
कोई न माने।
मन है पुष्प
मांगते हैं बंधन
खुशी की धूप।
खुशी चाहिए
तोड़ हर दीवार
साथ आइए।
हो यूँ जीवन
सागर जैसा बड़ा
रिसे न मन।
जीवन नौका
छोड़ना प्रेम घाट
मिला है मौका।
काटो न शाखाएं
मुश्किल में है पेड़
लेना सम्भाल॥