कुल पृष्ठ दर्शन : 112

You are currently viewing ‘रावण’ पत्नी होकर भी सदगुणी-पतिव्रता रही ‘मंदोदरी’

‘रावण’ पत्नी होकर भी सदगुणी-पतिव्रता रही ‘मंदोदरी’

डॉ. मीना श्रीवास्तव
ठाणे (महाराष्ट्र)
*******************************************

पंचकन्या (भाग ७)…

प्रात:स्मरण
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा।
पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम्॥
इस भाग में हम सकल गुणवती पंचम पंचकन्या मंदोदरी के बारे में और जानेंगे। मंदोदरी एक समय सीता के बारे में कहती है,-“सीता मेरे जितनी रूपमती नहीं, परन्तु वह इंद्र की पत्नी शची तथा चंद्र की पत्नी रोहिणी के समान ही पतिव्रता है।” अंत में मंदोदरी के सारे प्रयत्न विफल हो जाते हैं, और इस घनघोर युद्ध में उसके तीनों पुत्र मार दिए जाते हैं। युद्ध के अंतिम चरण में रावण युद्ध के लिए तैयार हो जाता है, परन्तु अब मंदोदरी अपने पति की छाया के जैसी उसके पीछे एक वीर पत्नी बनकर खड़ी होती है। राम, पराक्रमी रावण का वध कर देते हैं, उसके बाद यह पतिव्रता अपने पति के साथ सती हो जाने के लिए तैयार होती है, परन्तु श्रीराम उसे समझाते हैं, साथ ही विभीषण को उस समय प्रचलित प्रथाओं के अनुसार मंदोदरी से विवाह करने की आज्ञा देते हैं। इसलिए मंदोदरी का सती हो जाना आप ही आप टल जाता है। यह विवाह केवल राजनीतिक होता है, इसी लिए रावण जैसे पराक्रमी परन्तु पापी तथा स्त्रीलोलुप राक्षस की पत्नी होते हुए भी अपने सद्गुण तथा पतिव्रत के असिधारा व्रत के कारण मंदोदरी हमारी पांचवी पंचकन्या के रूप में प्रातःस्मरणीय होती है।
ये पंच कन्याएं स्त्रीत्व का अलग-अलग पहलू दर्शाती हैं, हर एक का चरित्र अभ्यास करने पर भिन्न-भिन्न अनुभूति होती है। अगर हम यह श्लोक ‘पंचकन्या’ इस अर्थ से लें तो ये कन्याएं हैं। कन्या यानि कुमारी, अविवाहित स्त्री। इन्हें कन्या किस उद्दिष्ट से कहा गया होगा ? यह विदित है ही कि ये पांचों स्त्रियाँ विवाहित हैं, साथ ही वे माताएं भी हैं। इसमें ऐसा भी गर्भित अर्थ निर्देशित हो सकता है कि कन्या यह सर्वार्थ से पवित्र होती है और इन स्त्रियों का परिचय इस दृष्टिकोण से परम पवित्र रूप में ही हो। अहल्या और द्रौपदी इन दोनों का एक से अधिक पुरुषों से संबंध होकर भी उन्होंने पवित्र तथा कन्या इन शब्दों को अलग ही ऊँचाई पर लाकर खड़ा किया। तारा एवं मंदोदरी इनकी तो कथा और ही निराली है। इन दोनों ने राज्यहित और उसकी सुरक्षा को अधिक महत्व दिया तथा स्वयं के पति के निधन के दुःख को अलग रखा। तारा ने राजमाता का पद स्वीकारा और सुग्रीव को राजा माना। मंदोदरी ने अपने देवर से विवाह किया, सिर्फ राज्य स्थिर बना रहे इसलिए! क्या यह आत्म त्याग श्रेष्ठ नहीं है ? ये सम्बन्ध और विवाह अन्य किसी भी कारणवश नहीं, बल्कि राजनीतिक कारण से प्रेरित थे। सीता, पति की अनुगामिनी थी, परन्तु उसके सास, ससुर और श्रीराम के उसे वनवास में जाने से परावृत्त करने के बावजूद राम के साथ जाने का निर्णय उसका था और वनवास का सारा दुःख उसने हँसते-हँसते सहन किया। अंतिम प्रसंग में भी उसने बहुत बड़ा निर्णय स्वयं ही लिया और अपना ‘भूमिकन्या’ नाम सार्थक करते हुए पावित्र्य का चरम बिंदु स्वयं ही प्रस्थापित किया। सीता को छोड़ बाकी चारों इस जग में अवतीर्ण हुईं, तब वे नवयौवनाएँ थीं। सीता भी उस समय की प्रथा के अनुसार जल्द ही विवाहिता हुई होगी। उन पर इतने सुन्दर संस्कार किसने, कब और कैसे किए, या वे जन्मजात ही थे, यह जानने का कोई मार्ग उपलब्ध नहीं।
उपरोक्त ‘कन्या’ शब्द की गहराई में जाकर उल्लेख करना चाहूँगी कि, ये पाँचों स्त्रियाँ केवल उनके पतियों के नाम के या उनके पुत्रों की वजह से परिचित नहीं हैं, अर्थात उनका मातृत्व या पत्नीत्व इस शब्द में अभिप्रेत नहीं है, बल्कि वे स्वतंत्र व्यक्तित्व और बुद्धिमत्ता की धनी स्त्रियों के रूप में पहचानी जाती हैं। यह मान्य करना ही होगा कि तब के समाज में स्त्री-पुरुष संबंध या नीति-अनीति की मान्यताएं अलग थीं। इन सबके परिमाण और परिणाम बदले। जैसे-जैसे समाज प्रगत (?) और पुरुषप्रधान होता गया, वैसे-वैसे स्त्रियों के बंधन अधिकाधिक वृद्धिगत और दृढ हुए। स्त्री की प्रतिमा एका पारंपरिक भूमिका अर्थात ‘पति की छाया और बच्चों की जाया’ इनमें बंदिस्त हुई। उसका स्वतंत्र अस्तित्व ही लुप्त हो गया। इस श्लोक द्वारा स्त्री किस स्वरूप में वंदनीय होनी चाहिए, यह बहुत ही अर्थपूर्ण तरीके से विशद किया गया है। पुरुष किसी स्त्री को पैरों की दासी न समझें, न ही मंदिर की देवी, सिर्फ यह समझे कि वह एक स्वतंत्र व्यक्तित्व वाली व्यक्ति है। इतना समझ में आ जाए, तो भी आज के समाज में उसका अभिप्रेत स्थान निर्मित होगा। स्त्रियों को भी अपने स्त्रीत्व को पहचानना होगा, इसके लिए स्त्री को स्वशक्ति को जानकर अपना स्थान निर्मित करना आवश्यक है। घर-संसार की चारदीवारी के परे दुनिया है, इस चेतना के जागते ही अगली जीवन-यात्रा आप ही आप आसान होती है। स्त्री ही घर, समाज तथा राष्ट्र का आधार स्तंभ है। इसी लिए, इन पंचकन्याओं का सम्मान करने वाला यह परंपरागत परन्तु आज के समय में भी उतना ही अर्थगर्भित श्लोक मुझे बहुत ही प्रभावशाली लगता है।