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रूप का श्रृंगार

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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रूप का श्रृंगार देख,
चकित आज सारे देव
अप्सरा भी चकित,
मन मोह रही कामिनी।

माँग में सिंदूर सोहे,
बिंदिया की चमक मोहे
काजल की धार,
मुस्काय रही चाँदनी।

अधर लाल-लाल सोहे,
गले मंगल हार सोहे
चूड़ियों की खनक,
खनकाय रही भामिनी।

करके सोलह श्रृंगार,
लिए हाथ पूजा थाल
पैरों की पायल,
खनकाय रही मालिनी।

साजन का साथ रहे,
जीवन साथ-साथ कटे
माँगने वरदान सब,
जाय रहीं दामिनी।

करवा लिए हैं हाथ,
देखने को चाँद आज
अँगना के चक्कर,
लगाय रहीं रागिनी।

दी है बड़ों ने सीख,
पैर पड़ो लो आशीष।
साजन का मुखड़ा,
निहार रहीं सजनी॥