कुल पृष्ठ दर्शन : 111

रोचक और चिंतनशील कृति ‘साथ नहीं देती परछाई’

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
******************************************************

‘साथ नहीं देती परछाई’ इंदौर के प्रसिद्ध आशुकवि प्रदीप नवीन का पहला ग़ज़ल संग्रह है। उनकी पूर्व में गीत,काव्य और व्यंग्य पर कृतियां प्रकाशित हो चुकी है। पाँच दशक से नवीन जी लेखन और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हैं,लेकिन गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करते हैं। यही वजह है कि पाँच दशक के लेखन के बाद उन्होंने ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित करवाया है। नवीन जी इंदौर की अधिकांश साहित्यिक संस्थाओं में अपनी निस्वार्थ सेवा देते आ रहे हैं। उनकी रचनाएं भी लगभग देश की हर एक पत्र-पत्रिका में वर्तमान में भी प्रकाशित हो रही है।

इस ग़ज़ल संग्रह में नवीन जी की १४३ ग़ज़ल है,जो कि उनकी मूल विधा व्यंग्य के पुट के साथ समाज राजनीति,मानवीय मूल्यों के क्षरण पर कटाक्ष करने में नहीं चूकती है। भाषा सरल और सहज है। आम पाठक को समझ आने वाली है। इस संग्रह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ‘आश’ ने बहुत ही सारगर्भित लिखी है।
संग्रह की ग़ज़लों पर चर्चा करें तो हम पाएंगे आज की मानवीय वृत्ति पर वे कहते हैं-

तलाश में किसी की भटकता है आदमी।
हताश होकर खुद को झटकता है आदमी।

ढूंढ कहाँ इंसान बचे हैं,
गिन इतने शैतान बच्चे हैं।

कुछ शेर जो कि किसी विस्फोटक मिसाइल से कम नहीं कहे जा सकते हैं,उनकी बानगी देखिए-

कुछ के चेहरे धूप कुछ के छाँव हो गये,
फिर हमारे देश में चुनाव हो गए।

आदमी को आदमी से प्यार चाहिए,
कैसे भी मिले नगद उधार चाहिए।

हम ने रगड़ी एड़ियां तब तो कुछ नहीं,
पा लिया जो कुछ तो हाथ मल रहे हैं लोग।

कंपकपाती ठंड से कल एक भारत मर गया,
जीते जी किसने ओढ़ाया एक दुशाला झूठ का।

ढूंढने से भी मुझे मिला नहीं,
शब्दकोश में जो शब्द प्रीत है।

वर्षा ने मुँह फेर लिया,
चिंताओं ने घेर लिया
बर्तन में बाजारों से,
पानी दस का सेर लिया।

मत उठा तू ऊँगलियाँ किसी भी दिशा में,
हर तरफ बजता हुआ बस ढोल पाएगा।

सबसे अच्छी यही हवा,
सिर्फ हवा में लठ्ठ चला
देख लाठी सब टल जाती
सर पर आती एक बला।

उत्साह से भरी शेरों की श्रृंखला में कुछ बहुत ही उम्दा शेर नवीन जी ने कहे हैं। जैसे-

दो कदम भी तो मुझसे न जाता चला,
कल्पना में बहुत घूम लेता हूं मैं।

आँसूओं से हमारा रिश्ता था,
आप आए तो मुस्कुराए हैं।

चलो एक अभियान चलाएं,
अच्छे कुछ इंसान बनाएं
बँटे नहीं जाति-टुकड़ों में,

अच्छा हिंदुस्तान बनाएं।

और भी बहुत से उम्दा शेर हैं जो इस कृति को रोचक और चिंतनशील कृति का प्रमाण-पत्र देते हैं,जो हर एक पाठक को झकझोरते हैं,खुद से प्रश्न करने का मजबूर करते हैं।
प्रदीप नवीन व्यावहारिक रूप से भी अपने मित्रों के बीच आरामी और फक्कड़ अंदाज के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि वह देर से अपना ग़ज़ल संग्रह लाए,पर दुरुस्त लाए। बहरहाल इस उम्दा संग्रह के लिए उनको बधाई।

 

Leave a Reply