हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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लुट रही हैं अस्मतें, बचते अश्क शूल से,
ज़िन्दगी की राह में, बिछ रहे बबूल से।
कन्धे तोड़ के सभी, बोझ दिल में दे गये,
ज़ख्म दिल में दे गये, चैन दिल का ले गये॥
चैन दिल का ले गये।
लुट रही हैं अस्मतें…॥
मन्जिलें बनीं हुईं, रास्तों का तय नहीं,
साॅंस ही बची हुई, धड़कनों में लय नहीं।
ज़िन्दगी गुजर करे, बस यही खयाल है,
बन्दगी के जज्बे बिन, बन रहे मलाल हैं।
बन रहे मलाल हैं।
वक्त की गुज़र कभी, एक पल न छोड़ती,
शाख झुक सके मगर, खुद के फल न तोड़ती।
आसमां छलक उठा, दर्द देखके वहाॅं,
मिट चुके हैं बूंद से, जिस्म फूल-से जहाॅं।
जिस्म फूल-से जहाॅं।
दौर देखते मगर, अज्म को न बांधते,
गीत किस तरह बनें, मीत ही न मानते।
लुट रही हैं अस्मतें…॥
कौन है जो बे-धड़क, कलियों को मसल गया,
खुशबुएं फिजां में थीं, बदबू में बदल गया।
हर तरफ बहार थी, अब जो कहकशां हुई,
दर्द हैं बचे हुए, बे-असर दवा हुई।
बे-असर दवा हुई।
क्यूं हरेक मन में इन्सानियत सिहर उठी,
तीर दिल में चुभ गये, दर्द से कहर उठी।
वक्त जो गुज़र गया उससे क्या वसूलते,
दिल ही भाव जुल्म के, क्यूं नहीं कबूलते।
क्यूं नहीं कबूलते।
वादियाँ है प्यार बिन, दिन बहार के गये,
प्यार से भरा था दिल, पर वो मारते गये।
लुट रही हैं अस्मतें…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।