डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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विविध रूप में है ऑंख शब्द, खुशियाँ सुख सबका संकुल है
अवसादन पीड़ा घायल मन, गमों सितम संजय दर्पण है।
ममता करुणा नेह भरित हो, अश्रु भरी ऑंखें सरिता है
पति अरु सन्तति में रहे सतत, सास-ससुर दे चैन निरत है।
लुटा चैन निज संपद अपनी, सींची छाती क्षीर पुत्र है
पर ममता अब है लावारिस, पिता नैन बस नीर शेष है।
परकीया तनया होती पर, दुल्हन बन ससुराल चली है
ऑंखें अश्रु ममतांचल चितवन, लाज कर्म संभाल रखी है।
भर अश्क ऑंख रूमानी दिल, कयामती अहसास बनी है
अन्तर्मन अल्फ़ाज भरे नैन, खूबसूरत बन नूर खड़ी है।
बहती पुरबी हवा नशीली, लहराते ये गिले बाल हैं
मदमाती इठलाती नवयौवन, चारु नयन सरसिज विशाल है।
कमल नैन लखि सजन प्रेयसी, मृगनयनी मुखचन्द सरस है
मीनाक्षी मधुशाल बनी रस, महक उठा मकरन्द सजन है।
चारु भंगिमा गज़ब नशीली कजरी ऑंख विशाल युगल है
घात लगा दुल्हन हिय सजना, घायल प्रिय बदहाल सरल है।
बड़ी दुखद है दीन-हीनता, आँसू बिन ऑंख जगत है
पेट-पीठ कंकाल एक तनु, श्रम चिन्तन कहँ धीर सबल है।
जीवन धारा फुटपाथ पर, बदनसीब तकदीर खड़ी है
भूख वसन में सदा भटकता, आँख अश्क तस्वीर पड़ी है।
आँखों में भर नेह अश्क कवि, सत्प्रेरक सत्कर्म विजय है।
मानवीय नैतिक पथ वाहक, दिग्दर्शक पथ न्याय उदय है॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥