कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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नारी: मर्यादा, बलिदान व हौसले की मूरत…

जब अत्याचार के बोझ तले,
धरती माँ आहें भरती हैं।
जब नन्हीं-नन्हीं सी कलियाँ,
काँटों की पीड़ा सहती हैं॥
जब पापी का इस धरती से,
नाम मिटाना होता है।
तब नारी को दुर्गा बन,
धरती पे आना होता है…॥
युगों-युगों से नारी शक्ति,
पीड़ा सहती आई है।
सुंदर-सी बगिया में जाने,
क्यों कलियाँ मुरझाई हैं।
जब-जब नारी को अपना,
पहचान दिखाना होता है।
तब नारी को दुर्गा बन,
धरती पे आना होता है…॥
कभी गार्गी बनी नारियाँ,
कभी अपाला बन आई।
अपने ज्ञान की ज्योति से,
सकल चराचर में छाई।
जब-जब नर के अंदर का,
अभिमान हटाना होता है।
तब नारी को दुर्गा बन,
धरती पे आना होता है…॥
ममता की मूरत बन के जो,
करे सृष्टि का नव विस्तार।
जिसके चरणों में झुक जाए,
नतमस्तक हो ये संसार।
जब अंधेरे में प्रकाश का,
ज्योति जलाना होता है।
तब नारी को दुर्गा बन,
धरती पे आना होता है…॥