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शहीद…

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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एक छोटे से गाँव में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा था। पूरे गाँव को रंग-बिरंगी झंडियों से सजाया गया था। सरकारी विद्यालय के विद्यार्थी खाकी पेंट व सफेद शर्ट पहनकर हाथ में छोटे-छोटे झंडे लेकर विद्यालय के मैदान में पंक्तिबद्ध होकर खड़े हुए थे। तब ही गाँव में एक खबर ने सभी को स्तब्ध कर दिया,गाँव के मुखिया श्री गणेशराव का बेटा वीरप्रताप जो ३ दिन पहले सीमा पर शहीद हो गया था। आज हेलीकॉप्टर से उसके शव को गाँव लाया जा रहा था। इस खबर ने सभी के होश उड़ा दिए क्योंकि,श्री गणेशराव आज विद्यालय के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे,परंतु गणेशराव अपने उच्चतम आदर्शों के कारण जाने जाते थे,इसलिए उन्होंने अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को निरस्त नहीं किया।
विद्यालय का कार्यक्रम प्रारंभ हो चुका था। तभी तिरंगे में लिपटा वीरप्रताप सिंह का शव श्री गणेशराव के घर के दरवाज़े पर लाया गया। विद्यालय घर के सामने ही था। उनकी ५ वर्ष की पोती मिनी,अपने पिता की मृत्यु से बेख़बर उसी समय एक गीत- “मत भूलो सीमा पर वीरों ने है प्राण गंवाए”,माइक पर पूरे जुनून से गा रही थी। गणेशराव के चेहरे पर दर्द और गर्व के मिले-जुले भाव आ जा रहे थे।
तभी उनका नौकर घबराते हुए दौड़कर बुलाने आया,भैया जी साहब…चलो…वो लोग फौजी भाई को लेकर आ गए। गणेशराव उस समय स्काउट में बेहतर प्रदर्शन के लिए बच्चों को पदक पहना रहे थे। उन्होंने अपना पूरा काम खत्म किया और एक पदक हाथ में रख कर घर पहुँचे। तिरंगे में लिपटा उनके बेटे का शव सामने रखा हुआ था। उन्होंने अपने हाथ मे रखा पदक वीरप्रताप को पहनाया और नमन किया,बोले- “आज मेरा जीवन सफल हुआ। बेटा आज अपनी मातृभूमि पर कुर्बान हो गया।”

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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