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श्रद्धांजलि:बिपिन रावत

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मेरी सेना के योद्धा (केंद्र- जनरल बिपिन रावत)


सिसक रही माॅं भारती,साश्रु वतन संतान।
खोकर विपिन सपूत को,अमर शौर्य बलिदान॥

आज पार्थ अवसान सुन,शोकाकुल जन देश।
शान तिरंगा वतन खो,बिलख रहा उपवेश॥

वीर काल विकराल था,शत्रुंजय सिरमोर।
थर्राता रिपुदल सतत,राष्ट्र मुकुट यश मोर॥

आज पराजित काल से,हुआ विजेता देश।
बिपिन वीर तन तज वतन,भक्ति प्रीति संदेश॥

बड़ा संयमी साहसी,धीर वीर गंभीर।
योद्धा अति रणबांकुरा,तेजस्वी शूरवीर॥

निर्धारक रणनीति का,नायक सैन्य महान।
नयी सोच तकनीक नित,राष्ट्र सुरक्षा शान॥

देवालय सन्तति प्रखर,लिख गाथा नव शौर्य।
कीर्तिमान स्वर्णिम वतन,विजयी सम था मौर्य॥

थल जल नभ गौरव बिपिन,महावीर था युद्ध।
तन मन धन सेवा वतन,सच्चरित्र मन शुद्ध॥

सिंहनाद रण पार्थ सम,शान्ति दूत सम सार्थ।
देशभक्ति रग-रग भरा,मानक था पुरुषार्थ॥

वीर गोरखा बांकुरा,सुत पौड़ी गढ़वाल।
भारत माँ का लाडला,हॅंसमुख नित खुशहाल॥

परमवीर सैनिक विपिन,रणकौशल मतिमान।
दूरदर्शी चिन्तक प्रखर,तत्पर नित बलिदान॥

सजग अजातशत्रु अभय,समदर्शी समवेश।
महारथी श्रीकृष्ण सम,नीति प्रीति संदेश॥

फैला चहुँ दिशि शोक है,है कृतज्ञ नत देश।
करे रुदन जनता नमन,श्रद्धांजलि वीरेश॥

आन बान सम्मान बन,रखा राष्ट्र की शान।
किया सुरक्षित चहुँ वतन,स्वाभिमान जयगान॥

गर्वित है माँ भारती,रखी कोख की लाज।
सुला रही माँ गोद में,ममतांचल हिय साज॥

कवि ‘निकुंज’ सादर ऋणी,शत-शत करे प्रणाम।
नश्वर तन मिल मृत धरा,अमर लोक गोधाम॥

तुम पर गौरव वतन,कालजयी बलधाम।
साश्रु नैन करती बिदा,अमर बिपिन अभिराम॥

अमर गीत शाश्वत जगत,युग-युग गाथा गान।
हर शहीद नायक बिपिन,नव भविष्य निर्माण॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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