डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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फूलों का सरताज कमल यह,
सरसिज सुन्दर चंद्रहार है
पंकिल पंकज मुख सरोज सम,
पद्मासन राजीव नयन हैं।
पुण्डरीकाक्ष पुण्डरीक सरसि,
प्रजापति जगत पद्मनाभ हैं
कमलनयन प्रभु जगन्नाथ हरि,
अरविन्द मनोहर चारु चरण हैं।
श्वेत वसन तनु शुभ्र कमल दल,
वाग्वादिनी श्वेताम्बुज है
सलिल सरोवर सुष्मित सरोज,
शारंग हाथ हरि लक्ष्मीश्वर है।
गजराज मोक्ष कारण सरोज,
हरिभक्त शक्ति नीलकमल है
राजीवनयन सियराम युगल,
चारु वदन सिय चन्द्रकमल है।
ललित कलित कमलासन कमला,
कली कुसुमित सुरभि नवला है
मधु माधव मधुकान्त मनोहर,
मान सरोवर श्वेत कमल है।
पद्म पुरा पद्मासन पद्मा,
शरदाम्भोज वदनाम्बुज है
पद्मनाभ विधिलेख ब्रह्म प्रिय,
चतुर्वेदज्ञा ज्ञान अम्ब है।
भव्य मनोहर राजीव कुसुम,
चारु रूप बहुरंग कमल है
रस पराग गुंज मकरन्द मधुप,
ऋतुराज मुदित लखि सरोज है।
प्रियतम सजनी उपहार मधुर,
अनुराग हृदय चारु कमल है
अभिनंदन नित स्वागतार्थ अतिथि,
मृदुल खिला राजीव कुसुम है।
अपनापन नित राजीव पुष्प,
शुभ वर्धापन मंगलमय है।
अरुणाभ खिला चहुँ दिशा गन्ध,
देवों के शिर चिर शोभित है॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥