राधा गोयल
नई दिल्ली
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एक महामारी ने जग में ताण्डव खूब मचाया,
कहीं आग तो कहीं बाढ़ ने रौद्र रूप दिखलाया।
पर्यावरण प्रदूषण से संसार हुआ संतप्त,
वृक्षों के कटने के कारण, धरती हुई विदग्ध।
कहीं बाढ़ तो कहीं आग ने, रौद्र रूप दिखलाया,
कुछ पल में लाखों लोगों का सुख संसार मिटाया।
कितनी कोख उजड़ गईं कितनी माँगों का सिन्दूर धुला,
बच्चे हुए अनाथ किसी को कोई सहारा नहीं मिला।
जब-जब विपद पड़ी प्रभु, तब-तब तुम ही बने सहाई,
लौट आओ ना आज धरा पर, मेरे कृष्ण कन्हाई।
लौट आओ ना, लौट आओ ना, करते यही गुहार,
अपने दीन-हीन भक्तों की, सुन लो करुण पुकार॥