दिल्ली
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लगातार जम्मू-कश्मीर में बढ़ रही आतंकी घटनाएं चिन्ता का कारण बन रही है। डोडा जिले में आतंकी हमले में कैप्टन समेत सेना के ४ जवानों और जम्मू-कश्मीर के एक पुलिसकर्मी का बलिदान अब यही दर्शा रहा है कि, शांति एवं अमन की ओर लौटा जम्मू-कश्मीर एक बार फिर आतंकवादी आघातकारी घटनाओं की भेंट चढ़ रहा है। इन घटनाओं का माकूल जबाव नहीं दिया गया तो यह घाटी एक बार फिर खूनी घाटी बन जाएगी, क्योंकि कुछ ही दिनों पहले कठुआ में १ सैन्य अफसर सहित ५ जवान आतंकियों का निशाना बन गए थे। इसके पहले भी जम्मू संभाग में ही सेना के कई जवान आतंकियों से लोहा लेते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके हैं। ये बहुत चिंतित करने वाले त्रासद एवं घिनौने घटनाक्रम हैं कि, कुछ समय से कश्मीर घाटी के साथ-साथ जम्मू संभाग में भी आतंकियों की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। हाल की कुछ घटनाओं से तो यह भी लगता है कि, आतंकियों ने जम्मू को गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना लिया है। एक ऐसे समय जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी हो रही है, तब आतंकियों का सक्रिय होना और सफलतापूर्वक अपने मंसूबों को कामयाब करना गंभीर चिंता का विषय है।
ज्यादा चिन्ताजनक यह है कि, पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी न केवल घुसपैठ कर रहे हैं, बल्कि सेना को निशाना बनाने में भी सफल हो रहे हैं। सरकार को उन खूनी हाथों को खोजना होगा, अन्यथा खूनी हाथों में फिर खुजली आने लगेगी। हमें इस काम में पूरी शक्ति और कौशल लगाना होगा। आदमखोरों की मांद तक जाना होगा। अन्यथा हमारी खोजी एजेंसियों एवं सेना की काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा कि, कोई २-४ व्यक्ति कभी भी पूरे प्रांत की शांति और जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं, हमारी संवेदनाओं को झकझोर सकते हैं।) झकझोर भी रहे हैं, जब आतंकवादी हमलों में शहीद जवानों के पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटे घर की ड्योढ़ी पर आते हैं, तब कारुणिक माहौल को देखकर दिल दहल उठता है, क्योंकि देश के लिए अपना सर्वोच्च लुटा देने वाला जवान किसी का बेटा, पति और पिता होता है। हर आँख में आँसू होते हैं। किसी की गोद, किसी की मांग सूनी हो जाती है। देशवासी सोचने को विवश हैं कि, वे शोक संत्पत परिवार के साथ करुणा और पीड़ा को कैसे बांटें। ‘कश्मीर टाइगर्स’ जैसे आतंकी संगठनों की ताजा बौखलाहट की एक बड़ी वजह जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली को लेकर बढ़ी सरगर्मी है। राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन के लिए चंद महीनों में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में, आतंकियों की बेचैनी समझी जा सकती है कि, जिस तरह लोकसभा चुनाव में घाटी में लोग मतदान केंद्रों पर उमड़ पड़े और दशकों पुराना कीर्तिमान टूटा, अगर विधानसभा चुनाव में लोगों का उत्साह और बढ़ा, तो जिन ‘स्लीपर सेल्स’ की बदौलत वे दहशत का अपना पूरा कारोबार चलाते हैं, वे भी मुख्यधारा के प्रति आकर्षित होकर उनके खिलाफ हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने घाटी के बजाय जम्मू में अपनी सक्रियता बढ़ाई है, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित किया जा सके और सीमा पार के आकाओं से मदद हासिल करने का सिलसिला जारी रहे।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद ३७० की समाप्ति के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में बड़े मतदान से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। इसी का परिणाम लगातार हो रहे आतंकी हमले हैं। इन हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिए नए सिरे से चुनौती पैदा की है। जम्मू-कश्मीर का माहौल सुधरने के बाद वहाँ के बाजार, पर्यटक स्थल गुलजार हुए हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधर रही है। इसलिए देशद्रोही नहीं चाहते कि, कश्मीर में शांति आए और निर्वाचित सरकार काम करे। केन्द्र में गठबंधन वाली मोदी सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। क्या इन आतंकी घटनाओं को केन्द्र सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है ? जो सरकार पाकिस्तान में घुस कर बदला ले सकती है, वह सरकार अब तक शांत क्यों है ?
कहीं न कहीं दिल्ली में बनी गठबंधन सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि, पाक पोषित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में शांति एवं अमन को कायम नहीं रहने देंगे। एक आंकड़े के अनुसार पिछले ३ वर्ष में करीब ५० जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा है। यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं। आतंक को करारा जवाब केवल तभी नहीं दिया जाना चाहिए, जब एक साथ बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों के जवानों को बलिदान देना पड़े। वास्तव में हमारे १ भी सैनिक का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। जो कहा जा रहा है कि, सैनिकों के बलिदान का बदला लिया जाएगा, उसे न केवल पूरा करके दिखाया जाना चाहिए, बल्कि आतंकियों, उनके आकाओं और उन्हें सहयोग-समर्थन देने वालों पर ऐसा करारा प्रहार किया जाना चाहिए, जिससे वे अपनी हरकतों से हमेशा के लिए बाज आएं। पाकिस्तान भले ही आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा हो, लेकिन वह जम्मू कश्मीर में पहले की तरह ही आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। उसकी घरेलू व विदेश नीति ‘कश्मीर’ पर ही आधारित है। चूंकि इसकी भरी-पूरी आशंका है कि चीन उसे उकसाने में लगा हुआ होगा, इसलिए भारत को कहीं अधिक सतर्क रहना होगा।
पुलिस के आला अधिकारी यदि यह कह रहे हैं कि, घाटी के नागरिक समाज में पाकिस्तानी ‘घुसपैठ’ को बढ़ावा देने में कतिपय राजनीतिक दलों का रुख भी जिम्मेदार रहा है, तो क्या यह आधारहीन है ? इसका मुकाबला हर स्तर पर हम एक होकर और सजग रहकर ही कर सकते हैं। ताजा आतंकी हमलों के विकराल रूप कई संकेत दे रहे हैं, उसको समझना है। कई सवाल खड़े कर रहा है, जिसका उत्तर देना है। यह पाकिस्तान का बड़ा षड़यंत्र है। ये घटनाएं चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं कि वक्त आ गया है अब जिम्मेदारी से, सख्ती से और ईमानदारी से जम्मू-कश्मीर को संभालें।