दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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संस्कारों के, पालक महान तुम,
संस्कृति तुमने ना छोड़ी
ली जो प्रतिज्ञा मेवाड़ इतिहास में,
अब तक ना तुमने तोड़ी।
बुरे समय में प्रण कर धारण,
राणा के जो सहचर थे
पल-पल जिनने साथ निभाया,
वो अरमानी अनुचर थे।
वन ही केवल सब-कुछ जिनका,
मेहनत, श्रम थे आभूषण।
ऐसे थे इस देश के वासी,
जीवन जिनका पर्यूषण।
अपनी धरती आजादी का,
राणा ने जब प्रण धारा
राणा संग था जीना-मरना,
स्व क्या सब, जीवन वारा।
मुगलों संग पीढ़ी गत पल-पल,
ज्यों-ज्यों रण था, चलता रहा
लिया प्रताप के, संग जो प्रण था,
वंशागत वो बढ़ता रहा।
खत्म हुआ, वो संघर्ष तुम्हारा,
अब स्वराज तुम्हारा है
प्रण पूरा, तुम कब मानोगे,
यह संकल्प तुम्हारा है ।
निज सम्मान को, करके अमर तुम,
मुख्यधारा की ओर चलो
जो पौरुष और दृढ़ बल तुममें,
तुम धारा को मोड़ चलो।
संघर्ष ये मिलकर, चले अनवरत,
मिलकर कदम से, कदम के साथ
शासन और प्रशासन थामें,
तुम्हारी बिगड़ी हुई जो बात।
सुख में भी सम भाग तुम्हारा,
हक मांगो दम भर कर तुम
यायावरी को त्यागो अब तुम,
जीवन तारण अब कर तुम।
‘तुमसे भावी भाग्य हो उज्ज्वल’,
धारण करो यह प्रतिज्ञा
एकसाथ जब, चलोगे संग-संग,
मिले सभी को हर सुविधा।
फुटपाथों पर जीकर जीवन,
कैसे खुद को संभालोगे
खुद तो फिर भी, संभल भी जाओ,
पीढ़ियाँ कैसे तुम तारोगे।
खुद की नहीं तो, उनकी सोचो,
जो भारत के भावी भविष्य
प्रण-ज्वाला में जल ना जाएं,
जीवन बनकर एक हविष्य।
मुख्यधारा के प्रगति पथ पर,
स्वागत करते तुम्हारा हैं।
पूर्ण हुआ वो प्रण कब ही का,
‘अजस्र’ सवेरा हमारा है॥
(विशेष-डिजिटल-समाज में भी हाशिए पर
राजस्थान की वनवासी जाति ‘गाड़िया-लौहार को समर्पित)
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार ‘अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि १७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान बूंदी (राजस्थान) है। आप बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान आदि मिले हैं।