हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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बुझ चुके चिरागों को फिर से,
जलाने की मुझमें ही तो क्षमता है
मैं एक शिक्षक हूँ, मुझमें पिता का प्यार,
और ममत्व भरी माँ की ममता है।
इन्हें कहने दो मुझे जो कहना है,
शिक्षा का सूरज मुझसे ही चमका है
वह झुग्गियों का चिराग भी आज,
मेरी निरन्तर सीखों से ही तो दमका है।
मैंने ही तो पढ़ाया है दुनिया में,
प्यून से पी.एम. तक के लोगों को
वे सब भोगते हैं अपनी क्षमतानुसार,
इस संसार के सभी भौतिक भोगों को।
मुझे मेरे ही पढ़ाए लोग ही न जाने,
कब-कब क्या-क्या कह देते हैं ?
कुछ लोग तो मुझसे ही सीख कर,
मुझको ही वापिस सीख देते हैं।
मैंने कक्षा-कक्ष में ही तो किया है,
संसार के सारे के सारे निर्माणों को
विश्वास नहीं होता है अगर किसी को,
तो पढ़ लो ऐतिहासिक प्रमाणों को।
तकलीफ नहीं होती है मुझे तब भी,
जब मुझे कोई चेला ही टोकता है
मैं इस तरह तर्क पैदा करता हूँ चेले में,
जिसे आगे बढ़ने से जमाना रोकता है।
चेला मुझसे शिकायत करता है,
मैं ही तो उसको अच्छे से सुनता हूँ
मेरे ही मार्गदर्शन से ही वह आगे चल कर,
अपने भविष्य का जीवन पथ चुनता है।
मैं उसे कभी स्वाभाविक डांटता हूँ,
शायद वह मुझसे तब कुछ रूठता है
पर यह मेरे व्यक्तित्व की कला है शायद,
कि वह दूसरे दिन फिर से मुझे ही पूछता है।
हाँ, मैं शिक्षक था, हूँ और रहूंगा,
मुझे खुद के होने पर गर्व होता है।
जब चेला सफल होता है जीवन पथ पर,
तब मेरे लिए वह एक विशेष पर्व होता है॥