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हीरा परखे जौहरी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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हीरा परखे जौहरी, सदा परख की मोल।
है जिसमें सम्वेदना, दर्द अपर हिय तोल॥

मौन श्रवण चिन्तन मनन, तभी परख हो वक्त।
कहाँ परख सत्कर्म यश, कुमति स्वार्थ आशक्त॥

हीरा परखे जौहरी, चमके हीरा दीप।
धीवर सागर रेत में, परखे मुक्ता सीप॥

तपोभूमि जीवन समझ, करो साधना कर्म।
बनो पारखी सत्य के, ज्ञान धर्म हो मर्म॥

हीरा परखे जौहरी, हीरा या पाषाण।
बुद्धिमान निबटे विपद, विवश मूर्ख दे प्राण॥

रखे धैर्य नित परखने, समय पात्र अरु देश।
बोधन हो संयम सुमति, समझ पात्र परिवेश॥

मेधावी विद्वान जो, करे सटिक विश्लेष।
शनैः शनैः बढ़ता कदम, जौहर वही विशेष॥

निर्मल चिन्तन जौहरी, पक्षपात से दूर।
नज़र महीनी पारखी, लिखता सच दस्तूर॥

मानक हो मौलिक सदा, रखे विषयगत ज्ञान।
रहे आस्था स्वयं पर, सत्य जौहरी मान॥

हीरा काटे काँच को, हीरक मोल अमोल।
परखे अपनापन अपर, प्रेम शान्ति रस घोल॥

आहत लालच तड़प मन, उलहन दे भगवान।
खोता संयम आत्मबल, कहाँ परख इन्सान॥

अलस कलह निद्रा व्यसन, करता झड़प समाज।
परख कहाँ निज लक्ष्य पथ, कहाँ करे आगाज़॥

परख सदा अनुभूति से, जन-जन का व्यक्तित्व।
बोल-चाल दैनन्दिनी, दिखे मनुज अस्तित्व॥

फँसे जाल मद कोप तम, हुए कुपथ गुमराह।
भीड़-भाड़ भौतिक जगत, कहाँ परख हो चाह॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥