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हे गजनंदन धारी

कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
इन्दौर मध्यप्रदेश)
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जन-जन के तुम मनभावन हो
रिद्धि-सिद्धि के स्वामी,
पल-पल तुमको पूजा करते
हम सब हिन्दुस्तानी।
जीवन की रुत बदला करती
और प्रेम की भाषा,
अपना सब कुछ अर्पण कर दें
इतना दे दो दाता।
जन-जन के तुम…

माया-मोह का बंधन भी अब
नहीं रहे कोई शेष,
जीवन बस खुशियों से भर दो
कुछ ऐसा करो गणेश।
मिली हुई हैं गिनती की ये
श्वांसें हम,तुम,सबको,
सोच-समझकर इन्हें बिताना
ना पछताना बरसों।
जन-जन के तुम…

हम तो विनय किया करते हैं
हे गजनंदन धारी,
मन को इतना पावन कर दो
प्रेम की करें उधारी।
जन-जन के तुम…ll

परिचय–कार्तिकेय त्रिपाठी का उपनाम ‘राम’ है। जन्म ११ नवम्बर १९६५ का है। कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) स्थित गांधीनगर में बसे हुए हैं। पेशे से शासकीय विद्यालय में शिक्षक पद पर कार्यरत श्री त्रिपाठी की शिक्षा एम.काम. व बी.एड. है। आपके लेखन की यात्रा १९९० से ‘पत्र सम्पादक के नाम’ से शुरु हुई और अनवरत जारी है। आप कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य और फिल्म सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। लगभग २०० पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आकाशवाणी पर भी आपकी कविताओं का प्रसारण हो चुका है,तो काव्यसंग्रह-‘ मुस्कानों के रंग’ एवं २ साझा काव्यसंग्रह-काव्य रंग(२०१८) आदि भी प्रकाशित हुए हैं। काव्य गोष्ठियों में सहभागिता करते रहने वाले राम को एक संस्था द्वारा इनकी रचना-‘रामभरोसे और तोप का लाईसेंस’ पर सर्वाधिक लोकप्रिय कविता का पुरस्कार दिया गया है। साथ ही २०१८ में कई रचनाओं पर काव्य संदेश सम्मान सहित अन्य पुरस्कार-सम्मान भी मिले हैं। इनकी लेखनी का उदेश्य सतत साहित्य साधना, मां भारती और मातृभाषा हिंदी की सेवा करना है।

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