संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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हे बुद्ध, हे अर्हंत,
जिसका कोई शत्रु नहीं
शत्रु मानव या प्राणी नहीं,
मानव के मन के शत्रु
काम, क्रोध, लोभ,
मोह, मत्सर और अहंकार
इन सब पर तुमने विजय ही
नहीं पाई,
बल्कि, तुमने मानव कल्याण का,
निर्वाण का
दु:ख निवारण का
मार्ग बताया।
मानव कल्याण हेतु केवल,
तीन बातें पालन करने को कही
शील, करुणा और प्रज्ञा
पंचशील, दानशीलता
दयावानता के साथ,
जागरूकता का पाठ पढ़ाया।
चोरी, हत्या, काम, मिथ्या वचन,
नशा तथा अभोज्य से
दूर रहना ही कल्याण का
मार्ग बताया,
जिस पर तुम खुद तो
चले ही और सबको,
चलने के लिए कहा
जो तुम्हारे मार्ग पर चला,
उसका जीवन सुखकर हुआ।
साधारण मानव के लिए,
गृहस्थ जीवन का मूलमंत्र
केवल पाँच नियम ही बताए,
भिक्षुक को आठ नियम का
पालन करने की दी हिदायत,
तुम तो स्वयं तीस कठोर नियम
जिंदगीभर पालते रहे,
कठोरता से पालन करते रहे
तभी तो तुम अर्हंत पद पर,
पहुँच पाए और
महापरिनिर्वाण,
निर्वाण को प्राप्त कर सके।
तुमने कभी नहीं कहा-
तुम ईश्वर हो,
बल्कि ईश्वर की
कल्पना को ललकारा,
क्योंकि, तुम भगवान हो
भगवान वो होता है
जिसने सभी आंतरिक,
शत्रुओं पर विजय पाई है।
अतः मेरी यही प्रार्थना है-
तुमसे मेरी मनोकामना है
सभी मानव जाति के प्राणी,
तुम्हारे बताए मार्ग पर चलें
मानव का मानव के साथ
मानव जैसा व्यवहार हो।
सबका कल्याण हो,
सबका मंगल हो॥