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अपने बच्‍चों से व्यवहार में रखें समझदारी

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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वर्तमान में एकल परिवार होने के कारण बच्चों का लालन-पालन अलग ढंग से होना शुरू हुआ। पहले संयुक्त परिवार होने से शिशु किस-किसके पास जाता और मस्ती करता था, वह सबके साथ हिल-मिलकर रहता था।जब भूख लगती थी, तब माँ के पास जाता था। और खाना खाना शुरू होने पर वह दादा- दादी, चाचा-चाची भाई-बहिन के साथ खाता पीता था। आज एकल परिवार के साथ यदि माता-पिता दोनों कामकाजी हैं तो बच्चों का लालन-पालन, पालना घर और विद्यालय में निकल जाता था। थके हारे माता-पिता काम और ऑफिस के बोझ तले रहते हैं और कुछ समय मिलता, तब बच्चों की ओर ध्यान दे पाते हैं। बच्चों के बौद्धिक विकास में पालना घर के अलावा शाला का प्रभाव अधिक रहने और प्यार कम मिलने से वह पालनाघर और विद्यालय को ही अपनी दुनिया मानने लगता है।
इस समय इन अबोध शिशुओं पर जो मनोवैज्ञानिक और मानसिक प्रभाव पड़ता है, वह उनके पूरे जीवन में प्रभाव डालता है। महंगाई के कारण अभिभावकों को नौकरी करना अनिवार्य होता जा रहा है। इस द्वंदात्मक स्थिति में शिशु का विकास समुचित न होने पर स्वाभाविक रूप से माँ-बाप उनके प्रति कभी कभी सम्यक बर्ताव नहीं कर पाते, जो बच्चों के मन में अमिट छाप छोड़ते हैं, जिससे दोनों अनभिज्ञ रहते हैं। इस अनजाने में होने वाला व्यवहार उनके जीवन में एक स्थाई स्थान बना लेता है।
यहाँ एक बात और कि गर्भावस्था में ही माँ-बाप के भाव-सोच का प्रभाव पड़ने लगता है, इसका उदाहरण अभिमन्यु है। इसके लिए गर्भावस्था के दौरान ही सकारात्मक सोच रखना चाहिए। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि, आप संतान कैसी चाहते हैं ? यदि आप अभिनेता-अभिनेत्री जैसा चाहते हैं तो उसे वैसे वातावरण यानी गर्भस्थ माँ उस वातावरण में रहे, क्योंकि वातावरण का प्रभाव बहुत पड़ता है। इसके लिए प्रशिक्षण की जरुरत है, पर इसे नज़रअंदाज़ करते हैं।
बच्‍चों के लिए पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं, इसलिए अभिभावक को अपना ये कर्त्तव्य बहुत सोच-समझकर निभाना चाहिए।
बचपन में माता-पिता बच्‍चे को जो कुछ भी कहते या सिखाते हैं, उसका असर बच्‍चे के व्यक्तित्व, बर्ताव, भावनाओं और आत्‍म-सम्‍मान पर पड़ता है। दुर्भाग्‍यवश कई माता-पिता गुस्‍से में कई ऐसे गलत चीजें बोल जाते हैं जो बच्‍चे के मन में घर कर जाती हैं। अगर बच्‍चा छोटा है तो आपको समझना चाहिए कि आपको उसे क्‍या कहना है और क्‍या नहीं ? वरना इसका उस पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
अभिभावक को अपने बच्‍चे के दिखने को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहिए। इससे बच्‍चे काे अपनी शारीरिक छवि को लेकर चिंता होने लगती है। इसकी वजह से उनमें ईटिंग डिस्‍ऑर्डर भी हो सकता है। बच्‍चा पतला हो या लंबा, उन्‍हें बाहरी की बजाय अंदरूनी खूबसूरती और मजबूती से प्‍यार करना सिखाएं।
मजाक में भी उससे ये वाक्‍य न कहें- ‘काश! तुम कभी पैदा ही नहीं हुए होते या तुमसे पहले तुम्‍हारा भाई या बहन हो जाता, तो तुम्‍हें इस दुनिया में लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।’ इससे बच्‍चों को लगता है कि उनकी जिंदगी की कोई अहमियत नहीं है। इससे उनमें कम उम्र में ही अवसाद हो सकता है।
ऐसे ही कई माता-पिता बच्‍चों को अपना उदाहरण देते हुए कहते हैं कि, तुम्‍हारी उम्र में तो हमने खाना बनाना या घर की जिम्‍मेदारियाँ उठाना सीख लिया था और तुम तो अभी तक गैर-जिम्‍मेदार हो। आपकी ऐसी बातों से बच्‍चा हताश हो सकता है। बच्‍चों को अपना अलग रास्‍ता और मंजिल बनाने दें। इससे उनका आत्‍मविश्‍वास भी बढ़ेगा।
ऐसे ही दूसरे बच्‍चों की उपलब्धियों की तुलना अपने बच्‍चे से करना बिलकुल गलत है। हर बच्‍चे में अलग खूबी और हुनर होता है और नकारात्‍मक रूप से उसकी दूसरों से तुलना करना उसके आत्‍मविश्‍वास को तोड़कर रख सकता है। इसलिए, उन्‍हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। गलत शब्‍दों का इस्‍तेमाल न करते हुए माता-पिता होने के नातेन बच्‍चों को दयालु, बहादुर और धैर्यवान बनना सिखाएं।
ध्यान रहे कि, बच्चा गीली मिटटी जैसा होता है। उसको जिस सांचे में ढालना है, वैसा ढल जाता है। उसके बाद कड़ी मिटटी होने पर वह टूट जाएगा, पर ढलेगा नहीं। यह समय बहुत कीमती होता है। ७ साल तक बच्चे को माँ का स्पर्श मिलना चाहिए और सत्तर के बाद बच्चों का संग मिलना चाहिए।
ये बुनियाद ही भविष्य की इमारत होगी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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