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‘आजाद कश्मीर’: कुछ अनुभव

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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रक्षा मंत्री राजनाथसिंह को हार्दिक बधाई देता हूँ कि,कश्मीर पर उन्होंने ऐसी बात का समर्थन कर दिया है,जो पिछले ५० साल से प्रायः लिखता-बोलता रहा हूँ। मैं हमेशा कश्मीर पर पाकिस्तान से बातचीत का समर्थक रहा हूँ,लेकिन पाकिस्तान के कई विश्वविद्यालयों,शोध-संस्थानों और पत्रकारों के बीच बोलते हुए दो-टूक शब्दों में कहा है कि सबसे पहले हम आपके ‘आजाद कश्मीर’ के बारे में बात करेंगे। प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और मियां नवाज शरीफ से ही नहीं,राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ से भी पूछा कि आपने कश्मीर के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रस्ताव पढ़ा है,क्या ? क्या उसके पहले अनुच्छेद में यह नहीं लिखा है कि,आप अपने कब्जाए हुए कश्मीर की एक-एक इंच जमीन खाली करें। उसके बाद वहां आप जनमत संग्रह करवाएं। आपने अभी तक क्यों नहीं करवाया ? मैंने उनसे पूछा कि क्या आप अपने कश्मीरियों को ‘तीसरा विकल्प’ देंगे ? याने वे भारत या पाकिस्तान में मिलने की बजाय पृथक राष्ट्र बन जाएं ? इस पर सभी पाकिस्तानी नेता मौन हो जाते हैं। पाकिस्तान की यह नीति कश्मीर के कई उग्रवादी और आतंकवादी नेताओं को भी पसंद नहीं है। जब वे मुझसे कहते कि आप अपना कश्मीर हमारे हवाले क्यों नहीं करते तो मैं उनसे पूछता हूँ,कि जो कश्मीर आपके पास है,उसका क्या हाल है ? आपके ही लेखकों और कश्मीरी पत्रकारों ने लिखा है कि हमारा ‘आजाद कश्मीर’ गर्मियों में एक विराट वेश्यालय में परिवर्तित हो जाता है। मैं अपनी कश्मीरी माताओं-बहनों को किस मुँह से आपके हवाले करुं ? इसके अलावा हमारे कश्मीर में तो धारा ३७० और ३५-ए लगी हुई है। आपके यहां तो ऐसा कुछ नहीं है। आपके कश्मीरियों और गिलगिट-बालटिस्तानियों पर पठानों और पंजाबियों की जनसंख्या भारी पड़ती जा रही है। चीन को आपने ५००० वर्ग किमी कश्मीरी जमीन १९६३ में तश्तरी पर रखकर दे दी है और आपका कश्मीर उसकी जागीर बनता जा रहा है। तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ के तीन प्रधानमंत्रियों से मेरी लंबी बातें हुई हैं। जब बेनजीर भुट्टो से कहा कि आपका कश्मीर तो आजाद है,अलग देश है। वहां जाने का ‘वीजा’ कहां से मिलेगा ? उसके प्रधानमंत्री से भेंट कैसे होगी ? वे हँसने लगी। उन्होंने अपने गृहमंत्री जनरल नसीरुल्लाह बाबर से कहा। जनरल बाबर ने नाश्ते पर मुझे अपने घर बुलाया और कहा कि ‘कौन गधा वहां वजीरे-आजम है ?’ उसे आप फोन करें। वह ‘मुनसीपाल्टी का सदर’ है। वह खुद आपसे मिलने यहां (इस्लामाबाद) चला आएगा। दूसरे दिन यही हुआ।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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