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‘अमेरिका’ भारत का दोस्त है या साहूकार ?

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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साहूकार को हमेशा कर्ज़दार अधिक प्यारा लगता है। कारण उसके कारण कर्ज़दार उसके प्रति वफादार होता है और उसकी आय का जरिया होता है। दोस्ती में सिर्फ चाय-पानी होता है और रिश्ते टूटने लगते है, पर कर्ज़दार और साहूकार का सम्बन्ध माँ-बेटे जैसा होता है। आज भी अमेरिका का प्रेम पाकिस्तान के प्रति जितना दैहिक है, उतना भारत से नहीं। भारत दोस्त है पर पाकिस्तान कर्ज़दार है। पाकिस्तान का रोम-रोम अमेरिका के क़र्ज़ में डूबा है और अब चीन से प्रेम हो चला। इसलिए, अमेरिका पाकिस्तान से अलग नहीं हो पाता है। पाक जब क़र्ज़ मांगता है, तब उसका हाथ नीचे और जब अमेरिका पाकिस्तान से अपनी जमीन पर सैन्य अभ्यास चाहता है, तब उसका हाथ नीचे होता है। इसी प्रकार भिखारी का हाथ-हथेली ऊपर की ओर होती है और साधु का हाथ आशीर्वाद के लिए हथेली नीचे की तरफ होती है। श्रीमान जो बाइडेन महोदय शुद्ध व्यापारी हैं। उन्हें तो अपना माल बेचना हैं तो प्रेम से बात करेंगे और पूरी मदद का आश्वासन भी देंगे, पर अमेरिका में भारत का प्रभुत्व बढ़ रहा है, उससे वे चिंता ग्रस्त हैं। भारतीय समुदाय पर नस्लीय हिंसा का जो प्रकोप होता हैं उस पर गाहे-बगाहे कुछ कह देते हैं, पर कोई समाधानकारक हल नहीं निकला और न निकलेगा। कारण कि इसमें शासन की नहीं, जनता की भागीदारी है। अमेरिकन भी नहीं चाहते कि, भारतीय यहाँ रहकर उन पर भारी पड़े। आई.टी. और अन्य क्षेत्र में भारत की भागीदारी अमेरिका में बढ़ती जा रही है, जो अमेरिका को असहनीय है, पर क़ानूनी सुरक्षा के कारण वे सुरक्षित हैं। पाकिस्तानियों द्वारा कोई भी अपराध करने पर अमेरिका थोड़ा नरम दिल दिखाता है अंदर से, पर बाह्य में उन पर कार्यवाही करने का वचन देता है। कारण कि, मुख्य रूप से क़र्ज़ की वसूली के लिए अमेरिका झुक भी जाता है। यह दोनों की मज़बूरी है ! !क्योंकि क़र्ज़ और देना तो क़र्ज़ वसूलना भी है।
हमारे प्रधानमंत्री, जो बाइडेन से पाकिस्तान के विरोध में कार्यवाही करने या आतंकवादी राष्ट्र घोषित कराने या संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थाई सदयस्ता की बात हो तो, उसमे अमेरिका ऊपर से हाँ-हाँ कहेगा पर,_ वह नहीं चाहता कि भारत हमारी बराबरी करे और दोस्त जैसा व्यवहार करे। कारण कि, वर्ष ६४ में अमेरिका ने पाकिस्तान को मदद की थी, तब से हमारे सौजन्य पूर्ण सम्बन्ध नहीं रहे। हमने बराक ओबामा से जो अपेक्षा की थी, वे कितनी पूरी हुई ? और ट्रम्प ने हमारी कितनी कटौती की ? आप इसी से अंदाज़ लगा सकते हैं। अमेरिका शुद्ध व्यापार पर भरोसा करता है, वह नीतियों पर मुकर जाता है। उसका लक्ष्य मात्र पेट्रोल आदि पर अपना नियंत्रण और चौधराहट का फायदा उठाना है। उसे मात्र अपना व्यापार बढ़ाने और युद्ध सम्बन्धी शस्त्र बेचने में पसंदगी है।
इतिहास साक्षी है कि, जब भी अवसर आया भारत के लाभ का, उसमें अमेरिका ने पक्ष नहीं लिया या मध्यस्थ रहा। कभी उसने अपनी तरफ से भारत को स्थाई सदस्यता की बात उठाई हो, जरुरत पर मुकर गया या विपक्ष में गया। वैसे आज की तारीख में भारत बहुत शक्तिशाली और समृद्ध है। उसने लगभग २० वर्ष पूर्व पाबन्दी की परवाह नहीं की, कारण कि अमेरिका जानता है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है।
इसलिए हमें अमेरिका का इतना अधिक कर्ज़दार नहीं बनना है कि,:वह जैसा नचाए, हम वैसा नाचें। हम अपने दम पर निरंतर अपने प्रयासों से लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे, पर किसी की कठपुतली बन कर नहीं। व्यापार से हमें कोई परहेज़ नहीं, परहेज़ है तो उनकी कुटिल नीतियों से। हमें अच्छे दोस्त बनाने या बनने की परख करनी जरुरी होगी।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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