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अर्थहीन पुरुषत्व धरा पर

कैलाश भावसार 
बड़ौद (मध्यप्रदेश)
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‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ स्पर्धा विशेष…………………

अर्थहीन पुरुषत्व धरा पर,यदि साथ नहीं नारी है,
नहीं अर्थ जग की माया का,भले संपदा सारी है।

अर्धनारी ईश्वर बन शिव में,माँ गौरा ही समाई है,
विष्णु प्रिया लक्ष्मी माता,समृद्धि लेकर आई है।
शक्ति स्वरूपा ने जगदीश्वर,की सत्ता ही संवारी है,
अर्थहीन पुरुषत्व…॥

धन्य तुम्हारा जीवन तुमने,इस प्रकृति को प्राण दिए,
निर्बल ही रहता संसार को,जल के संग पाषाण दिए।
जग जननी माता की सृष्टि,अदभुत मंगलकारी है,
अर्थहीन पुरुषत्व…॥

माँ की ममता बहन की समता,डोर बनाती बंधन की,
बेटी की कोमलता ही,अनुभूति हृदय स्पंदन की।
अलग-अलग रूपों में जिसने, सबकी छवि निखारी है,
अर्थहीन पुरुषत्व…॥

प्रेम,समर्पण,त्याग,तपस्या,से आगे की कहानी वो,
संघर्षों के बीच निकलती,एक दरिया तूफानी वो।
सदा उजाला ही करती, जब वक्त पड़े चिंगारी है,
अर्थहीन पुरुषत्व…॥

 

परिचय-कैलाश भावसार का जन्म स्थान जीरापुर एवं जन्मतिथि ५ सितम्बर हैl वर्तमान में आपका निवास बड़ौद (जिला आगर मालवा),म.प्र.हैl मध्यप्रदेश के श्री भावसार ने एम.एस-सी. तथा बी.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl कार्यक्षेत्र में अध्यापक होने के साथ ही सामाजिक गतिविधि के निमित्त सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि में सक्रिय रहते हैंl आपकी लेखन विधा में गीत तथा कविता हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक जागरुकता बढ़ाने के साथ ही आनंद हासिल करना हैl

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