संदीप धीमान
चमोली (उत्तराखंड)
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एक आँसू ही बचे हैं
तेरे अभिषेक को,
क्या बहा दूं तुझ पर
अपने विवेक को!
गिड़गिड़ा रहा तेरे दर
सुनो ना तुम शम्भू,
कहां बहाऊं मैं
अब अपने आवेग को।
खो दिया तेरे दर पर
असत्य का साथ मैंने,
सुनो ना तुम शम्भू
आज हूँ मैं आवेश में।
देखा है, जाना भी है
असत्य का मौल बहुत,
क्या तुम चाहते हो
करूं मैं भी प्रयोग ये!
नहीं मात्र पंक्तियाँ, है मन भाव,
सुनो न शिव शम्भू मेरे।
करूं अब क्या तेरे,
फैलाए इस समावेश का!!