शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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क्या मारेगी मौत मुझे मैं आफत का परकाला हूँ,
इन गोरों का काल बना हूँ मैं ‘आजाद’ मतवाला हूँ।
किसकी है औकात मुझे वो छू कर के तो दिखलाये,
जिसको जान नहीं है प्यारी मेरे पास वही आए।
मैं हूँ एक आजाद परिंदा हाथ कभी न आऊँगा,
इन गोरों को चुन-चुन कर के अब मैं मार गिराऊँगा।
मैं हूँ शेर पिता का जाया शेरों जैसे जीता हूँ,
है गुलाम मेरा भारत मैं घूँट खून के पीता हूँ।
जब तक ना आजाद करा लूँ चैन मुझे नहीं आयेगा,
उस दिन सोऊँगा सुख से आजाद देश हो जायेगा।
ये उद्गार चन्द्रशेखर के कोई भुला नहीं पायेगा,
हमें भरोसा है ईश्वर पर वापस एक दिन आयेगा।
क्रान्तिदूत बन के जिसने क्रांति ज्वाल सुलगाई थी,
बचपन से गोरों के सीने में आग लगाई थी।
कोड़े खाता रहा मगर आजाद नाम बतलाया था,
लहू बहा पर वन्दे मातरम नारा वहीं लगाया था।
पूरा जीवन किया समर्पित देश की आजादी के हित,
युवा शक्ति के दम पर आजादी का बिगुल बजाया था।
लड़ता रहा आखिरी दम तक वो मूँछों पर ताव दिये,
बैठे हुए अल्फ्रेड पार्क गोरों को कितने घाव दिये।
हुई गोलियां खत्म सभी बची पास जब इक गोली,
मार कनपटी पर उसने भारत माता की जय बोली।
छोड़ गया शोकाकुल हमको आजादी का परवाना,
हम अक्षुण्ण रक्खेंगे भारत हमको यही कसम खाना।
जब तक नभ में चाँद-सितारे गंगा में बहता पानी,
याद रहेगी सदा चन्द्र आजाद की अमर कहानी॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है