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आत्मीय माहौल में हुई शानदार गोष्ठी

पटना (बिहार)।

साहित्यिक गोष्ठी के लिए बड़े-बड़े आलीशान होटल और भव्य साज-सज्जा ना तो कविताओं की शान बढ़ाती है ना कवियों की। ऐसी गोष्ठियों की अपेक्षा साहित्यिक मित्रों के घर पर आयोजित लघु गोष्ठियों में आत्मीयता की जो खुशबू मिलती है, उसके सामने सब कुछ फीका लगता है। ऐसी ही आत्मीय गोष्ठी कवि डॉ. अंकेश कुमार के संयोजन में कवयित्री डॉ. निशी सिंह के आवास पर हुई।
      यहाँ कुछ कवि-कवियित्रीयों को लेकर स्त्री विमर्श और कवयित्री विषय पर छोटी-सी परिचर्चा तथा काव्य गोष्ठी को फिल्मांकित भी किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता वयोवृद्ध कवि डॉ. मेहता नागेंद्र सिंह ने इन पंक्तियों के साथ की-‘फूल है धुएं का गुब्बार भी है, तो डर कैसा ? जहर के साथ सजर भी है तो डर कैसा ?’
वैशाखी पर्व के अवसर पर राष्ट्रीय कवि संगम की पटना इकाई द्वारा संस्था की केंद्रीय मंत्री डॉ. निशी सिंह के आवास पर जिलाध्यक्ष डॉ. अंकेश कुमार के संयोजन में इस गोष्ठी का संचालन कवि रवि राज नारायण ने किया।
विशिष्ट अतिथि कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि, इस तरह की छोटी-छोटी गोष्ठियों में हम अपने भीतर की भावनाओं को सहज रूप से अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम होते हैं। यह गोष्ठी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि, सिख इतिहास में एक निर्णायक क्षण जिसने सिख धर्म को अपना अंतिम रूप दिया, उस दिन को शिद्दत के साथ याद कर रहे हैं। डॉ. कुमार ने कविता का पाठ किया -‘राम नाम सुमिरन करें, साहिब तेग बहादुर जी। रक्षा करें सनातन की शीश चढ़ावें साहिब जी।’ ऐसे ही सिद्धेश्वर ने एक रूमानी नज़्म “सुबह की तुम हो शबनम और मैं सूरज का प्रकाश, प्यार के इस उपवन में फूलों को है भौरें की तलाश! ग़ज़ल के सुर्ख होंठो को मधुर संगीत की यह छुअन!, शब्दों की शीतलता से बुझाती है दिल की प्यास!! प्रस्तुत कर लोगों का हृदय जीत लिया l
निशी सिंह ने ‘हो छाया कितना भी सघन अंधेरा, विपत्तियों ने डाला हो चहूँ ओर डेरा’, तो स्मृति कुमकुम ने ‘कब मिलेंगे ये हमको पता ही नहीं, प्यार में अब तुम्हारी वफा ही नहीं!’ रचना सुनाई। कथाकार व कवि शैलेन्द्र कुमार की भी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति रही। डॉ. निशी सिंह ने आभार प्रकट किया।
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