दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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पहले परिवार का अर्थ
माँ-बाप, दादा-दादी,
चाचा-चाची, ताऊ-ताई,
काका-काकी, भाई-बहन,
वगैरह-वगैरह।
अभी परिवार का अर्थ,
या अभी का परिवार,
पति-पत्नी और बच्चे दो-चार।
अपनापन का एहसास जहां,
खुशियों का हो भंडार वहां
सहयोग का वातावरण जहां,
तेरा नहीं मेरा नहीं
हमारा का हो भाव वहां
जहां हों सबके एक विचार,
वही कहलाए आदर्श परिवार।
बुजुर्गों की बात चले जहां,
उनका हो सम्मान वहां
निज स्वार्थ हावी न जहां,
घर का मुखिया समदर्शी हो
अनुशासन हो जहां के आचार,
वही कहलाए एक सुंदर परिवार।
भाई जहां पर भरत जैसे,
देवर जहां पर लक्ष्मण हो
सीता जैसी भाभी जहां पर,
दशरथ जैसे श्वसुर हो
भईया को राम होना होगा,
सुख-शांति का वहीं बसेरा होगा
होगा जहां पर सबसे एक व्यवहार,
‘दीनेश’ वही होगा एक उत्तम परिवार।
चोट एक को लगे, दर्द सभी को हो,
मांगने से पहले सबको मिल जाए
जिसकी जो भी आवश्यकता हो,
छीना-झपटी की कोई बात नहीं
मिल-बांटकर खाने की आदत हो,
हर चीज में बराबर के हों हिस्सेदार,
‘दीनेश’ दुनिया का वही है श्रेष्ठ परिवार।
भाई-भाई में रहता है प्रेम,
पत्नियाँ आकर करती विद्वेष
मेरा पति कमाता, मैं रहूं विशेष,
कलह फैलता इसी वजह से
मैं क्यों कर ज्यादा काम करूं,
मेरा पति कमाकर लाता बाहर से।
इसी बात पर होती है आज तकरार,
इसीलिए तो टूट रहा है आज परिवार॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।