कुल पृष्ठ दर्शन : 395

बच्चों को पाठशालाओं में मातृभाषा (प्रांत की हिंदी)पढ़ाने का प्रस्ताव

 

पी.डी. लेले

अहमदाबाद(गुजरात)

******************************************************************

हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों के लोगों को एक-दूसरे के साथ बातचीत करने में कठिनाई होती है,क्योंकि सबकी भाषा एक नहीं है। पहले भी इसके लिए काफी प्रयास हुए हैं, पर आज तक ऐसी भाषा अस्तित्व में नहीं है। एक नयी योजना यहाँ प्रस्तुत की गयी है। इस आसान योजना से १५ वर्षो में समूचे भारत में एक भाषा का स्वप्न साकार होगा। भारतीय भाषाओं में १० से ३० प्रतिशत तक संस्कृत शब्द है। मराठी में ‘पाणी’,हिंदी में ‘पानी’,संस्कृत में ‘जल’,बांगला में ‘जोल’,कन्नड़ में ‘नीर’ शब्द वाटर का समानार्थी है। सामान्य नागरिक को ३००० शब्दों की रोजमर्रा के जीवन में जरुरत होती है। यदि ३००० शब्दों की सूची बनाएं और उसमें समानार्थी विभिन्न भारतीय भाषाओं में इस्तमाल किए जाने वाले अधिक ४ शब्द (जो संस्कृत से हैं) शालाओं में पढ़ाएँगे तो एक भाषा देश में सबको ज्ञात होगी।

संपूर्ण देश में सभी लोगों को एक सामान्य भाषा आने से निम्नलिखित फायदें होंगे-प्रवास में बातचीत की आसानी,सरकार के दस्तावेजों में आसानी,हमारी भाषाओं के साहित्य का आपस में आदान- प्रदान और संपूर्ण देश में अच्छी शिक्षा पद्धति।

इस लेख में दूसरा महत्व का विचार शालाओं में बच्चों को विविध कक्षाओं में भाषाएँ तथा लिपियाँ कैसी पढ़ाई जानी चाहिए,इस नयी पद्धति का सुझाव है। आजकल पहली कक्षा से ही बच्चा राज्य की भाषा और उसकी लिपि,हिंदी राष्ट्रभाषा और उसकी देवनागरी लिपि तथा अंग्रेजी और उसकी लिपि यह सभी ३ भाषाएँ एकसाथ पढ़ता है। इस कारण उसका जीना मुश्किल हो गया है। यहाँ सुझाव है कि १ से ३ कक्षा तक केवल मातृभाषा (प्रांत की भाषा) पढ़ाई जाये,४ से हिंदी-देवनागरी पढ़ाई जाये,कक्षा ७ से संस्कृत तथा अंग्रेजी शुरूआत से पढ़ाई जाये।

इस पद्धति को कार्यान्वित करने से विद्यार्थी हँसते-खेलते सभी भाषाएँ अच्छी तरह सीख पायेगा। इसके कारण शिक्षक एवं विद्यार्थी के माता-पिता का भी बोझ कम होगा। वह हमारी संस्कृति,रहन-सहन से जुडा रहेगा। हमारी सभी भाषाओं तथा संस्कृत भाषा का विकास होगा। विद्यार्थियों में भारतीय संस्कारों का सिंचन होगा। एक नये जोशीले राष्ट्रप्रेमी समाज का निर्माण होगा। #योजना में नया विचार क्या है- -आम आदमी को जीने के लिये ३००० शब्दों की जरुरत होती है। हमें सभी भारतीय भाषाओं तथा संस्कृत में ऐसी ३००० शब्दों की सूची तैयार करनी है। -३००० शब्द वही होंगे,लेकिन अलग-अलग प्रदेशों के विद्यार्थी अपनी-अपनी मातृभाषा एवं लिपि में पढ़ेंगे। -इसके अलावा ३००० शब्दों के समानार्थी अन्य भाषाओं के ४ अधिक शब्द भी विद्यार्थी अपनी मातृभाषा की लिपि में पढ़ेंगे। हमें ४ ऐसे शब्द चुनने हैं,जो भारत में ६० से ७० प्रतिशत लोग इस्तेमाल करते हों तथा जो संस्कृत से जुडे हों। जो शब्द एक से अधिक भाषाओं में हो,उसे प्राधान्य देना हैl -ये ४ अधिक शब्द हर प्रदेश के भाषा के लिये अलग-अलग भाषाओं से लिये जायेंगे,पढ़ाए जाएँगे। जिन ४ भाषाओं के शब्द गुजराती विद्यार्थी पढ़ेगा,उससे अलग भाषाओं के शब्द तामिल विद्यार्थी पढ़ेगा।इन ३००० शब्दों की सूची हमें शालाओं में समूचे देश में पढ़ानी है। इस योजना के फलस्वरुप तमिल आदमी बंगाली,हिंदी,शब्दों को जानेगा और असमी आदमी को हिंदी और कन्नड़ शब्द ज्ञात होंगे।

#दूसरा नया विचार- -कक्षा पहली से तीसरी तक केवल मातृभाषा और उसकी लिपि में पढ़ना है। बोलना और व्याकरण आसपास और घर में हँसते-खेलते स्वाभाविक रुप से आता ही है। केवल मातृभाषा की लिपि पढ़ने का श्रम करना है। -कक्षा चौथी से हिन्दी पढ़ने के लिये केवल देवनागरी लिपि पर ध्यान केन्द्रित करना है,और हिन्दी का व्याकरण पढ़ना है। उसके शब्द,अर्थ,कविता,लेख पहले से ही मातृभाषा और उसकी लिपि में पढ़े हैं।

-कक्षा ७वीं में संस्कृत पढ़ना है। उसे देवनागरी लिपि और हिंदी ज्ञात है,केवल संस्कृत व्याकरण सीखना है।

-यहाँ से उसे अंग्रेजी शुरुआत (ए,बी,सी,डी) से पढ़नी है। -यदि छात्र चाहे तो कक्षा ९ से १२ तक वह और कोई भारतीय या विदेशी भाषा जैसे-चीनी,जापानी, फ्रेंच,जर्मन आदि पढ़ सकता है। # योजना के तहत पढ़ाई करने के फायदे -१० साल की शालेय शिक्षा में हर छात्र ३००० संस्कृत के शब्दों से पूरी तरह(भारतभर में इस्तेमाल करने वाले) वाकिफ होगा,तथा देवनागरी लिपि द्वारा भारतभर में सभी को एक भाषा ज्ञात होगी।

-उपर दी गई व्यवस्था में भाषाएँ-लिपि को पढ़ाई में तीन-तीन साल का अंतर है। पहले मातृभाषा (लिपि),फिर हिंदी-देवनागरी लिपि फिर संस्कृत भाषा और अंग्रेजी। इस तरह पढ़ने- पढ़ाने से लेख-शब्द-लेखन-पाठ-कविताएँ-निबंध जो अगले तबके में पढ़े-पढ़ाए हैं,वही दोहराए जा सकते हैं,केवल दूसरी नयी लिपि या दूसरी नयी भाषा में। इससे छात्र,उसके माता-पिता तथा शिक्षकों का बोझ बहुत कम होगा और विद्यार्थी हँसते-खेलते ज्यादा परिश्रम किये बिना आसानी से भाषाएँ सीख पाएगा। छात्रों का पढ़ाई का बोझ कम होगा। यह इस पद्धति की उपलब्धि हैl विशेषता यह कि छात्र को एक बार किसी एक ही भाषा या लिपि को पढ़ने में मेहनत करनी है। भाषाएँ और लिपि की पढाई को अलग करके यह संभव हुआ है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

 

Leave a Reply