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आधी बूंद…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आधी-अधूरी हमेशा,
अनभावन नहीं होती
आज ढह कर बह चुकी,
पूरी नहीं;
ठहरी हुई आधी बूंद की
बात करते हैं…
पेशानी पर पसीने की,
उंगलियों में पोंछी-सिमटी
आधी बूंद…
गालों पर सूख चुकी एक लकीर की,
अंतिम छोर पर अध-सूखी
एक आधी बूंद…
नन्हें-नन्हें ओस कण,
पत्तियों की नुकीली कोरों में
ढरने को उतावली आधी बूंद…
किसी सीप में अनायास पहुंची,
मोतियों की शक्ल लेती
आधी बूंद…
नहाने के बाद,
लंबे केश के जाल में
उलझी-फंसी आधी बूंद…
अपने में सूखती,
आधी बूंद…
ज़मीं को तरसती,
आधी बूंद…
ढरने को मचलती,
आधी बूंद…।
अंततः आसमान,
चूमती आधी बूंद…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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