डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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यह सच्चाई है,
जीवन की अंगड़ाई है
टूटते-सिमटते हुए,
घर-घर की कहानी है
यह आज़ की सिमटी दुनिया में,
बढ़ रही कहानी है।
परिवार अब परिवार कहां,
माँ-बाप से बढ़ रही दूरियाँ यहां
जन्म देकर निष्प्राण हो गए,
घर-आँगन में अब
उनके अपने सब खो गए।
भूल गए थे एक चमन के फूल सब,
आज़ एकल परिवार में
रमे हुए दिख रहे हैं परिवार सब,
इतिहास गवाह है
सुन्दर और स्नेहिल स्पर्श से,
सना हुआ परिवार था
खुशियों और सुकून,
उम्दा और सम्मान का
अद्भुत उपकार था।
हमारी खुशियाँ खत्म हो गई है आज़,
नहीं दिखता कोई अपना यहाँ
सब-कुछ बन चुका है,
रहस्य और राज यहाँ
एक चमन के फूल थे हम सब यहां,
आज़ ज़िन्दगी बिखर गई है यहाँ।
आओ हम-सब मिलकर यहाँ एक,
सुन्दर और स्नेहिल प्यार से सना
सुन्दर और आकर्षक समां बनाएं।
संयुक्त परिवार संग मिलकर रहने की,
नवोन्मेष योजना को
धरती पर पुनः ले आएँ॥
परिचय–पटना (बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता, लेख, लघुकथा व बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचना कर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम., एम.ए.(अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, हिंदी, इतिहास, लोक प्रशासन व ग्रामीण विकास) सहित एलएलबी, एलएलएम, एमबीए, सीएआईआईबी व पीएच.-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन) पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित कई लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिसमें-क्षितिज, गुलदस्ता, रजनीगंधा (लघुकथा) आदि हैं। अमलतास, शेफालिका, गुलमोहर, चंद्रमलिका, नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानी (पक्षियों की एकता की शक्ति, चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा, लेखन क्षेत्र में प्रथम, पांचवां व आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के कई अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।