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आभासी दुनिया

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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जिंदगी तरसती है,
दो पल बातों के लिए
माना तुम्हारे अपने
भले ही चला रहे हों वाट्सअप,
मेहमाननवाजी पर ध्यान कहाँ ?
खट-पट होती रोज पति-पत्नी में,
पत्नी जरा छोड़े मोबाइल
तो, कोई काम बने।

तुम्हें भी छोड़ना होगा मोबाइल,
कोई काम की सुध नहीं
बिना नहाए
बैठे रहे घंटों,
तारीफों के पूल
बांधते रहने का,
मानो लिया हो जैसे ठेका।

हाजिर हो रहे हो,
जैसे होता अर्दली
या जिन्न पाल लिया हो,
गुड मॉर्निंग, गुड ऑफ्टरनून, गुड नाईट बोलना अनिवार्य
नहीं तो दोस्ती टूटी,
ये तो वैसा ही लगता जैसे
‘साँप घर साँप पाँवणा’
बस जीभ की लपालपी।

कुछ कम करो,
बेजान-सी आभासी बातें
हकीकत में जब होंगे
आमने -सामने तो,
प्रत्यक्ष को प्रमाण की
आवश्यकता न होगी।
आभासी दुनिया से बाहर की
दुनिया भी होती थी कभी,
जिसमें मिलता था सुकून॥

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL