एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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आनलाइन रिश्तों की ये,
आभासी दुनिया होती है
कितने सच्चे कितने झूठे,
कभी परेशानियां होती है।
पल में बनते-बिगड़ते यह,
आत्मीयता से दूर होते हैं
अपने स्वार्थ में निहित ये,
कब यहाँ मजबूर होते हैं।
आनलाइन रिश्तों का ये,
बनावटी संसार होता है
स्वयं को प्रदर्शित करने,
दिखावटी विचार होता है।
फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट से,
ही ये निहाल हो जाता है
लाइक और कमेंट पाकर,
ये मालामाल हो जाता है।
अपने रिश्तों को भूलकर,
कैसी दुनिया बना ली है
जिंदगी जीना छोड़ कर,
सबसे दूरियाँ बना ली है।
विकसित तकनीक ने ही,
वास्तविक रिश्ते तोड़े हैं
भावनात्मक लगाव रखने,
के लिए ही नाते थोड़े हैं।
इंसान खुद के अकेलेपन,
से फिर घबराता रहता है।
आनलाइन रिश्तों में यह,
वजूद तलाशता रहता है॥