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ईश्वर के कृपापात्र

ओमप्रकाश अत्रि
सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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ये जो
जितनी भी,
गगनचुंबी
इमारतें दिख रही हैं,
उसमें
रहने वाले,
सबसे खास हैं
ईश्वर के।

वे,
पहले कृपापात्र हैं
उसके,
जिसके इशारे पर
हवा-नदियाँ बह रही हैं।

हिलते हैं
वृक्षों के पत्ते,
गुंजारते हैं
फूलों पर भ्रमर दल,
जिसकी
साँसों से,
करतल ध्वनि
दुनिया में होती है।

अधिकारी हैं
पहले रहमो-करम के,
जो
आसमान के नजदीक
सितारों से,
बातें कर रहे हैं।

बड़े-बड़े,
ऐशो-आराम के
साधनों से सज्जित हैं,
आज
सम्पन्न हैं,
वही लोग
जो
सक्षम हैं,
धनधान्य से।

झोपड़ पट्टियों में,
रहने वाले
वंचित हैं
कुदरत की कृपा से,
बनते रहते हैं
हर वक़्त,
कोपभाजन
मोहताज हैं
वही
दाने-दाने को।

जो,
बड़ी-बड़ी
अट्टालिकाओं को
गगनचुंबी बनाते हैं,
वही
उसमें रहने का
बस,
स्वप्न देखते हैं।

मर जाते हैं,
उन्हीं
अट्टालिकाओं को बनाने में,
पर
हमेशा से,
फुटपाथों पर
गुजारा कर रहे हैं।

ईश्वर भी,
उस
बैंक की तरह है
जो,
सुसम्पन्न लोगों पर
रहमत कर रहा है।

जो,
खटते हैं
रात-दिन
रोटी के चक्कर में,
उन्हें
सदा-सदा के लिए,
सार-सागर की
उदण्डित लहरों में
बहने को छोड़ देता हैll

परिचय-ओमप्रकाश का साहित्यिक उपनाम-अत्रि है। १ मई १९९३ को गुलालपुरवा में जन्मे हैं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती शान्ति निकेतन में रहते हैं,जबकि स्थाई पता-गुलालपुरवा,जिला सीतापुर है। आपको हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी सहित अवधी,ब्रज,खड़ी बोली,भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाले ओमप्रकाश जी की पूर्ण शिक्षा-बी.ए.(हिन्दी प्रतिष्ठा) और एम.ए.(हिन्दी)है। इनका कार्यक्षेत्र-शोध छात्र और पश्चिम बंगाल है। सामाजिक गतिविधि में आप किसान-मजदूर के जीवन संघर्ष का चित्रण करते हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,नाटक, लेख तथा पुस्तक समीक्षा है। कुछ समाचार-पत्र में आपकी रचनाएं छ्पी हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-शोध छात्र होना ही है। अत्रि की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य के विकास को आगे बढ़ाना और सामाजिक समस्याओं से लोगों को रूबरू कराना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सहित नागार्जुन और मुंशी प्रेमचंद हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज- नागार्जुन हैं। विशेषज्ञता-कविता, कहानी,नाटक लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“भारत की भाषाओंं में है 
अस्तित्व जमाए हिन्दी,
हिन्दी हिन्दुस्तान की न्यारी
सब भाषा से प्यारी हिन्दी।”

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