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उपन्यास केवल मनोरंजन के लिए नहीं, समाज को दिशा देने वाला हो

लोकार्पण…

इंदौर (मप्र) |

मनोभाव की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है उपन्यास। मनोरंजन को ध्यान में रखकर उपन्यास को नहीं लिखा जाता है, बल्कि यह समाज को एक दिशा भी देता है।
यह विचार साहित्य अकादमी मप्र के निदेशक डॉ. विकास दवे ने डॉ. कला जोशी के उपन्यास ‘नदी थी वह’ के लोकार्पण समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति के सभागृह में साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति में लोकार्पण के इस अवसर पर शिक्षाविद् डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे चर्चाकार के रूप में उपस्थित रहीं।
डॉ. दवे ने कहा कि, भैरप्पा के आवरण उपन्यास की परम्परा का उपन्यास है ‘नदी थी वह।’ डा. जोशी ने इस उपन्यास में अपने मनोभाव की अभिव्यक्ति निःस्वार्थ भाव से की है।
चर्चाकार डॉ. श्रीवास्तव कहा कि डॉ. जोशी ने उपन्यास में बसे जीवंत बिंब को प्रदर्शित किया है। उपन्यास के कथानक जितने सूक्ष्म हैं, उतने तरल भीद। उपन्यास निश्चित उद्देश्य को सामने रखकर लिखा गया है।
हिंदी को समर्पित मंच हिंदीभाषा डॉट कॉम की संयोजक-सम्पादक डॉ. नरगुंदे ने चर्चाकार के रूप में कहा कि उपन्यास में जो सरसता, सहजता, प्रवाहमयता, सादृश्यता देखने को मिलती है, वह हमें ऐसी अनुभूति कराती है कि, यह हमारे अपने आसपास का ही आवरण है जिसे कभी हमने जिया है। इसकी प्रवाहमयता में आप इस कदर बह जाएंगे कि नर्मदा किनारे बसे होशंगाबाद, बेतवा, मंडला, डिंडोरी, बस्तर आदि जगहों को आप उपन्यास में ही घूम कर आ सकते हैं। विवाह संस्था में भी उपन्यास में रुचि दिखाई देती है। गौंड समाज के दु:ख-दर्द, प्रकृति के प्रति उनकी आस्था को इस उपन्यास में भली-भांति भांपा जा सकता है।
उपन्यास की लेखिका डॉ. जोशी ने कहा कि, उपन्यास के मुख्य पात्र गोपाल की प्रेरणा उन्हें अपने पुत्र मृण्मय से मिली। कथा नायिका विद्या प्रेम की ऊर्जा से संचालित जागरण की दिशा में निकल पड़ती है। प्रारंभ में अतिथियों का परिचय डॉ. वंदना चराटे तथा डॉ.मनीष काले ने दिया। संचालन रजनी झा और अल्ताफ ने किया। आभार डॉ. प्रतिभा जोशी ने माना।

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