कुल पृष्ठ दर्शन : 178

You are currently viewing उपराष्ट्रपति जी के विचार पर प्रधानमंत्री को अमल करना चाहिए

उपराष्ट्रपति जी के विचार पर प्रधानमंत्री को अमल करना चाहिए

*निर्मल कुमार पाटोदी,इंदौर(मप्र)
शिक्षा में मातृभाषा अपनाई जाएगी,तब ही राष्ट्र की युवा पीढ़ी स्वाभाविक रूप से अपने जीवन के हर क्षेत्र में देश की सभी भाषाओं को बिना आग्रह के अपना लेगी। नयी शिक्षा नीति में देश की सभी भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की ओर बिना विलंब ध्यान दिया जाना आवश्यक है। प्रस्तुत लेख में उपराष्ट्रपति जी के विचार पर प्रधानमंत्री मोदी को अमल करना चाहिए। आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए पहला कदम राष्ट्र में राष्ट्र की भाषाओं को हर क्षेत्र में सम्मान दिए बिना आज़ादी अधूरी और अपंग ही रहेगी।
गांधी ने भी देश की मातृभाषाओं को जीवन के हर क्षेत्र में अपनाने के लिए पुरज़ोर कोशिश की थी। उनकी १५० वीं जन्म जयंती की सार्थकता उनके आह्वान को साकार करने पर ही निर्भर है।

*डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
(मुम्बई-महाराष्ट्र)

प्रधानमंत्री जी की पहल,उपराष्ट्रपति जी के विचार, नोबेल पुरस्कार विजेता प्रख्यात भौतिक शास्त्री सर सी.वी. रमन का चिंतन निस्संदेह ये सब तर्कसंगत हैं और देश में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मौलिक चिंतन, मौलिक कार्य को बढ़ाने के साथ-साथ देश की प्रगति में देश के तमाम ग्रामीण, कस्बाई और निर्धन-वंचित वर्ग की सहभागिता सुनिश्चित करने की ओर सार्थक सोच के संकेत देते हैं,लेकिन प्रश्न यह है कि जब तक भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षित विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा और रोजगार में समान और समुचित अवसर नहीं मिलेंगे और निजी शिक्षण संस्थानों व कंपनियों का सहभाग नहीं होगा तो यह प्रयास किस प्रकार सफल होगा ? सरकार को उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं का माध्यम उपलब्ध करवाने के साथ-साथ इनके माध्यम से रोजगार की संभावनाओं को भी सामने रखना होगा,ताकि विद्यार्थी और अभिभावक भारतीय भाषा माध्यम को अपना सकें। उच्च प्रौद्योगिकी संस्थानों में कुछ स्थान भारतीय भाषाओं से आने वाले विद्यार्थियों के लिए भी रखे जाने होंगे। संबंधित राज्यों द्वारा भी मातृभाषा या राज्य की भाषा से पढ़ कर आए विद्यार्थियों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में प्राथमिकता देने की व्यवस्था करनी होगी। इस संबंध में नौकरशाही और राजनीतिक दलों को भी अपनी सोच को परिवर्तित करना होगा।
सरकार भारतीय भाषाओं के लिए रोजगार और विकास के मार्गों को खोलने के लिए क्या कदम उठाती है,इस पर सबकी नजर है। हमें प्रतीक्षा है कि केन्द्र व राज्य सरकारें इसके लिए क्या करती हैं?
जिस प्रकार देश की स्वतंत्रता का अमृत-महोत्सव भी जोर-शोर से गुलामी की भाषा में मनाने का कार्य हो रहा है,उसे देख कर नौकरशाही की सोच और गांधी जी का नाम लेने वाले नेताओं की अनदेखी भी चिंता पैदा करती है।
जय हिंद! जय हिंद की भाषा!

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

Leave a Reply