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उसूल

डाॅ. पूनम अरोरा
ऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)
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एक पत्थर पर एक ओर आलोक व दूसरी ओर नेहा दोनों ही मिलने के लिए हाथ बढ़ाए हुए हैं,किन्तु तिल भर के लिए उनके हाथ रूक गए। काॅलेज के शैक्षिक भ्रमण के दौरान दोनों के दिल इक-दूजे के बेहद करीब आ चुके थे। विवाह की बात को लेकर दोनों के मध्य मनमुटाव हो गया। नेहा का कहना था कि हम भाग कर शादी कर लेते हैं,पर आलोक ने इंकार कर दिया।
“तुम मेरे अरमानों की कलियों को समाज और सम्मान के डर से खुद ही पाँव तले मसल रहे हो।”
“नहीं मैं समाज से नहीं डरता,अपने उसूलों पर चलता हूँ। मैं पूरी जिंदगी ये कहलाना नहीं चाहता कि बीवी को भगा कर लाया हूँ। तुम अपने पापा को मना लो। “
“मेरे पापा नहीं मानेंगे,क्योंकि हम ब्राह्मण हैं और तुम पंजाबी।” नेहा ने कहा।
“चलो ऐसा करते हैं,मैं अपने बाऊ जी को मना लेता हूँ,फिर मेरे बाऊ जी तुम्हारे पापा को राजी कर लेंगे।”
“नहीं,मेरे पापा किसी कीमत पर भी नहीं मानेंगे।”
“हमारे विचारों में मैंने महसूस किया है,बहुत बड़ा अंतर है। इससे पहले कि हम रास्ते में उलझ जाएँ, हमें सोच-समझकर ही जीवन का सफ़र शुरू करना चाहिए।” कहकर आलोक उठकर चला गया।
दो दिन बाद नेहा ने आलोक को मैसेज किया,’माना कि मुझसे ख़फ़ा हो तुम,बुलाऊंगी भी,तो मिलने नहीं आओगे। खैर छोड़ो…यह तो दिल का शिकवा है और तुम दिल से अधिक उसूल की बात करते हो ।’

परिचय–उत्तराखण्ड के जिले ऊधम सिंह नगर में डॉ. पूनम अरोरा स्थाई रुप से बसी हुई हैं। इनका जन्म २२ अगस्त १९६७ को रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) में हुआ है। शिक्षा- एम.ए.,एम.एड. एवं पीएच-डी.है। आप कार्यक्षेत्र में शिक्षिका हैं। इनकी लेखन विधा गद्य-पद्य(मुक्तक,संस्मरण,कहानी आदि)है। अभी तक शोध कार्य का प्रकाशन हुआ है। डॉ. अरोरा की दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-खुशवंत सिंह,अमृता प्रीतम एवं हरिवंश राय बच्चन हैं। पिता को ही प्रेरणापुंज मानने वाली डॉ. पूनम की विशेषज्ञता-शिक्षण व प्रशिक्षण में है। इनका जीवन लक्ष्य-षड दर्शन पर किए शोध कार्य में से वैशेषिक दर्शन,न्याय दर्शन आदि की पुस्तक प्रकाशित करवाकर पुस्तकालयों में रखवाना है,ताकि वो भावी शोधपरक विद्यार्थियों के शोध कार्य में मार्गदर्शक बन सकें। कहानी,संस्मरण आदि रचनाओं से साहित्यिक समृद्धि कर समाजसेवा करना भी है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा हमारी राष्ट्र भाषा होने के साथ ही अभिव्यक्ति की सरल एवं सहज भाषा है,क्योंकि हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। हिंदी एवं मातृ भाषा में भावों की अभिव्यक्ति में जो रस आता है, उसकी अनुभूति का अहसास बेहद सुखद होता है।

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