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क्यों कुचल देते हैं लोग ?

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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कितनी कोमल कितनी सुंदर कितनी छबीली होती हैं बेटियाँ,
फिर भी न जाने क्यों करते हैं लोग मूर्खता में इनकी अनदेखियाँ।

दिख जाता है किसी मुस्कुराती बेटी का चेहरा जब सुबह-सबेरे,
करुणा, ममता जगती है अंतर्मन में, धुल जाते हैं पाप घनेरे।

वह चुलबुली चिड़िया-सी चहकती, फूल-सी महकती गाँव में मेरे,
उसकी मौजूदगी से ही तो आबाद है ये घर, गाँव और सबके डेरे।

लोग यूँ ही है चिढ़ते और ऊंघते उसके घर में जन्म लेने के बाद,
वह बेचारी हर आँसू पी कर भी करती है दो-दो घर आबाद।

फूलों को यूँ तोड़ना-मरोड़ना तो जमाने की पुरानी-सी आदत है,
वे क्या जानें कि, इन्हीं फूलों से होती यहाँ खुदा की इबादत है।

क्यों कुचल देते हैं लोग जन्म लेने से पहले ही इसको गर्भ में ?
क्या सम्भव है ऐसे पिशाचों को बेटा हो जाने पर जगह स्वर्ग में ?

बोझ नहीं उपहार है बेटी, उस खुदा की कुदरत व रहनुमाई का,
क्यों हर बार पूछा जाता है हिसाब उससे ही उसकी बेगुनाही का ?

किसी की मरती बहन है देखो, तो किसी की बहू-भाभी है,
किसी की मरती बेटी है देखो, क्या इसी का नाम आजादी है ?

जहाँ महफूज नहीं है फिजाओं में खुले में साँसें भी लेना,
सुन नारी, उस समाज को अपनी सुरक्षा का जिम्मा न देना।

माना कि, कुछ नारियाँ चालाक हैं, पर सजा सबको तो न दो,
गुनाह जिसने किया है हिसाब तो लो, उसी को सजा भी दो॥